जो स्वार्थ को छोड़कर दूसरों के कल्याण के लिए तत्पर रहता है उसकी ही जयकार होती है
सभी जगह राधा की ही स्तुति हो रही थी। इससे देवर्षि नारद खीझ गए। इस मानसिक संताप को मन में छिपाए वे कृष्ण के पास पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि कृष्ण भयंकर सिरदर्द से कराह रहे हैं।
By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 28 Mar 2017 11:14 AM (IST)Updated: Tue, 28 Mar 2017 11:41 AM (IST)
सभी जगह राधा की ही स्तुति हो रही थी। इससे देवर्षि नारद खीझ गए। इस मानसिक संताप को मन में छिपाए वे कृष्ण के पास पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि कृष्ण भयंकर सिरदर्द से कराह रहे हैं। देवर्षि के हृदय में टीस उठी। पूछा, ‘भगवन्! इस वेदना का कोई उपचार है क्या? ’ कृष्ण ने उत्तर दिया, ‘यदि मेरा कोई भक्त अपना चरणोदक पिला दे, तो यह वेदना शांत हो सकती है। यदि रुक्मिणी अपना चरणोदक पिला दे, तो शायद लाभ हो सकता है।’
नारद ने मन में सोचा- भक्त का चरणोदक भगवान के श्रीमुख में!’ रुक्मिणी के पास जाकर उन्होंने सारा हाल कह सुनाया। रुक्मिणी ने इन्कार कर दिया। तब कृष्ण ने नारद को राधा के पास भेजा। राधा ने जो सुना, तो तत्क्षण
एक पात्र में जल लाकर उसमें अपने दोनों पैर डुबो दिए और नारद से बोलीं, ‘देवर्षि, इसे तत्काल कृष्ण के पास ले
जाइए। मैं जानती हूं, इससे मैं पाप की भागीदार बनूंगी, लेकिन अपने प्रियतम के सुख के लिए मैं अनंत युगों तक यातना भोगने के लिए प्रस्तुत हूं।’ इस घटना से देवर्षि समझ गए कि तीनों लोकों में राधा के ही प्रेम की स्तुति क्यों हो रही है।
कथासार : जो अपने स्वार्थ को छोड़कर दूसरों के कल्याण के लिए तत्पर रहता है, उसकी ही सब जगह जय-
जयकार होती है।
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