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रक्त की जितनी बूंदें गिरतीं, उतने ही नए रक्तबीज पैदा हो जाते

मनुष्य का मन भी तो रक्तबीज के समान है। एक विचार हटने पर हजार खड़े हो जाते हैं। अपने होश को चंडी बनाने की कोशिश करें। उसे सुप्त नहीं रहने दें।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 04 Apr 2017 11:33 AM (IST)Updated: Tue, 04 Apr 2017 11:55 AM (IST)
रक्त की जितनी बूंदें गिरतीं, उतने  ही नए रक्तबीज पैदा हो जाते
रक्त की जितनी बूंदें गिरतीं, उतने ही नए रक्तबीज पैदा हो जाते

 देवासुर संग्राम में रक्तबीज असुर की कथा आज भी प्रासंगिक है। कथा है कि जब दुर्गा और रक्तबीज के बीच युद्ध हुआ, तो दुर्गा ने उस राक्षस पर वार किया। आश्चर्यजनक बात यह थी कि रक्त की जितनी बूंदें गिरतीं, उतने

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ही नए रक्तबीज पैदा हो जाते। लंबा युद्ध चला। तब दुर्गा को अपना रूप बदलना पड़ा।

उन्होंने काली, चंडी, चामुंडा जैसे रूप धारण किए और रक्तबीज का सर्वनाश कर दिया। अब धरती पर रक्त किस तरह गिरता और रक्तबीज पैदा होते? मनुष्य का मन भी तो रक्तबीज के समान है। एक विचार हटने पर हजार

खड़े हो जाते हैं। अपने होश को चंडी बनाने की कोशिश करें। उसे सुप्त नहीं रहने दें। जिस तरह चंडी को भाव से

जाग्रत करना पड़ता है, उसी तरह अपने बीच सो रही चेतना को चंडी का रूप देना होगा।

यही मन रूपी रक्तबीज राक्षस का नाश करेगा। अक्सर मन में ढेर सारे विचार उठते रहते हैं, जिससे हम परेशान भी हो जाते हैं। विचारों की भीड़ को अस्वीकार नहीं, बल्कि स्वीकार करें, लेकिन यह स्वीकारोक्ति होश में होनी

चाहिए। जब आप ऐसा करने लगेंगे, तब आपको लगेगा कि विचारों की भीड़ में कुछ विचार बहुत अच्छे हैं और उसी दिन से आपके अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। कुछ लोग बिना होश को जाग्रत किए ध्यान का अभ्यास करते हैं, जिससे कोई नतीजा नहीं निकलता। इसके विपरीत कोई व्यक्ति यदि प्रयास करता है, तो वह ध्यानस्थ होने में सफल हो जाता है। यदि यह भाव जाग्रत हो जाए, तो समझ लें कि वह बुद्ध हो गया।


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