कहते हैं अधिकमास के पीछे हिरण्यकशिपु का पहेलीनुमा वरदान था
अधिकमास के संबंध में हिंदू पौराणिक कथाओं में कई किंवदंतियां मिलती हैं। कहते हैं अधिकमास के पीछे हिरण्यकशिपु का पहेलीनुमा वरदान था, जिसे सुलझाने के लिए ब्रह्माजी ने अधिक माह बनाया।
अधिकमास के संबंध में हिंदू पौराणिक कथाओं में कई किंवदंतियां मिलती हैं। कहते हैं अधिकमास के पीछे हिरण्यकशिपु का पहेलीनुमा वरदान था, जिसे सुलझाने के लिए ब्रह्माजी ने अधिक माह बनाया।
विष्णु पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार आदिपुरुष कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए। हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष। हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और यह वरदान मांगा कि, ' न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा और न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा न रात में, न घर के अंदर न ही घर के बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से, न ही वर्ष के किसी माह में उसे मारा नहीं जा सके।
ब्रह्माजी ने उसे यह वरदान दे दिया। वरदान पाकर हिरण्यकशिपु अहंकारी बन गया। उसने स्वयं को भगवान घोषित कर दिया। युद्ध कर देवराज इंद्र से स्वर्ग भी छीन लिया। लेकिन उसका एक पुत्र था जिसका नाम था प्रह्लाद, वह भगवान विष्णु का भक्त था।
उसने अपने पुत्र को कई यातनाएं दीं ताकि वह पिता को भगवान मान कर उनकी पूजा करें, लेकिन ये संभव नहीं हो सका। हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को ऊंची चोटी से फिंकवाया। हाथी के नीचे कुचलवाया यहां तक की अपनी बहन होलिका के जरिए उसे अग्निदाह भी करवाया लेकिन उसे किसी भी तरह से हानि नहीं पहुंचा सका।
अंत में जब उसका पापों का घड़ा भर गया तो भगवान विष्णु नृसिंह अवतार में प्रकट हुए। और उन्होंने हिरण्यकशिपु से कहा कि, तुम्हारे वरदान के अनुसार न में मनुष्य हूं और न ही पशु, क्यों कि मेरा शरीर मनुष्य का है लेकिन सिर सिंह का। इस समय न दिन है और न रात यानी दिन का आखिरी प्रहर शाम के 6 बजे हुए हैं।
न तुम इस समय घर में हो और न ही घर के बाहर यानी तुम घर की दहलीज(देहरी) पर है। और यह अधिक मास है। यानी वर्ष का 13 माह जो कि तुम्हारी मृत्यु की पहेली के लिए बनाया गया है। हिरण्यकशिपु तु्म्हें में किसी शस्त्र से नहीं बल्कि अपने नाखूनों से मारूंगा। इस तरह अब तुम्हारी मृत्यु निश्चित है। इस तरह भगवान नृसिंह ने हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।