गृहस्थी ने इस तरह बांध रखा है कि धर्मकार्य के लिए समय ही नहीं मिलता
लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रति यदि आप समर्पित हैं, तो कोई भी आपको कर्म पथ से विचलित नहीं कर सकता है।
जनक राजा थे, लेकिन वे आध्यात्मिक जीवन जीते और वैसा ही विचार रखते थे। एक बार उनके उपदेश से सभा सदगण बड़े प्रभावित हुए। सभी ने उनके धार्मिक जीवन की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इतने में एक सज्जन बोल उठे, ‘राजन मुझे गृहस्थी ने इस तरह बांध रखा है कि धर्मकार्य के लिए समय ही नहीं मिलता।’ यह सुनकर जनकजी कहने लगे, ‘सज्जनो, मैं उठना चाहता हूं, लेकिन मुझे सिंहासन ने पकड़ रखा है।
इसलिए मैं उठ नहीं पा रहा हूं।’ यह सुन वही सज्जन कहने लगे, यह कैसे संभव हो सकता है कि सिंहासन किसी को पकड़ ले। जनक जी तुरंत बोल उठे, ‘तब यह भी कैसे संभव हो सकता है कि गृहस्थी आपको पकड़ ले। गृहस्थी में मोह तो आपने लगा रखा है।’
कथा सार : लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रति यदि आप समर्पित हैं, तो कोई भी आपको कर्म पथ से विचलित नहीं कर
सकता है।