हाई कोर्ट ने यहां रामलीला आयोजन के लिए अनुमति देने से इन्कार कर दिया
दिल्ली के सबसे पुराने रामलीला आयोजनों में एक परेड ग्राउंड की रामलीला शायद इतिहास बन जाए। दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले के बाद इस बार आयोजन अधर में है। मल्टीलेवल पार्किंग होने का हवाला देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने यहां रामलीला आयोजन के लिए अनुमति देने से इन्कार
नई दिल्ली । दिल्ली के सबसे पुराने रामलीला आयोजनों में एक परेड ग्राउंड की रामलीला शायद इतिहास बन जाए। दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले के बाद इस बार आयोजन अधर में है। मल्टीलेवल पार्किंग होने का हवाला देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने यहां रामलीला आयोजन के लिए अनुमति देने से इन्कार कर दिया है।
सारी तैयारियां पूरी कर चुके आयोजक अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में है। परेड ग्राउंड पर रामलीला आयोजन का इतिहास 95 वर्ष पुराना है। वर्ष 1958 से शुरू इस रामलीला ने समय के साथ कई बदलाव देखे हैं। हाईटेक होते हुए भी इसने थोड़ी बहुत परंपरागत पहचान बनाए रखी है।
शुरुआत से ही इसमें जनक बाजार लगता है, जिसमें पुरानी दिल्ली का जायका समेटे चाट-पकौड़ी की दुकानें लगती है। यहां की रामलीला इसलिए भी अहम है, क्योंकि यह देश के शीर्ष राजनीतिज्ञों का पसंदीदा रही है। हर वर्ष राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति व प्रधानमंत्री इस आयोजन का गवाह बनते हैं।
पिछले वर्ष दशहरा के अवसर पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी परेड ग्राउंड रामलीला आयोजन में साथ इकट्ठा हुए थे। राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर सभी ने साथ में राम, लक्ष्मण व सीता को तिलक लगाए थे।
रामलीला मंच से पूरे देश को बुराइयों पर अच्छाइयों की जीत का संदेश दिया था। फिल्मी हस्तियां भी इस रामलीला में श्रद्धापूर्वक पहुंचती रही हैं। फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार वर्ष 2013 में आए थे। परेड ग्राउंड में श्री धार्मिक लीला कमेटी रामलीला का आयोजन करती है।
इस बारे में कमेटी के महासचिव धीरज धर गुप्ता ने मायूसी जताते हुए कहा कि हाई कोर्ट के फैसले से उन लोगों को काफी निराश हुई है। उन्होंने बताया कि इस मुद्दे को लेकर आयोजन समिति की बैठक बुलाई गई है, जिसमें आगे की रणनीति पर विचार किया जाएगा।
बहुत संभव है कि समिति हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाए। कहीं और आयोजन के सवाल पर उन्होंने बताया कि पुरानी दिल्ली में कहीं और इतना बड़ा स्थल मौजूद नहीं है। फिर भी विकल्प देखा जाएगा।