ये है राम नाम की महिमा जो जन्म जन्मांतर तक रहती है साथ
भक्त और भगवान के बीच श्रद्धा को चित्रित करती यह कथा अमूमन हिंदू पौराणिक ग्रंथों में मिल जाएगी। कथा के अनुसार अयोध्या में एक निम्न जाति का व्यक्ति रहता था।
भक्त और भगवान के बीच श्रद्धा को चित्रित करती यह कथा अमूमन हिंदू पौराणिक ग्रंथों में मिल जाएगी। कथा के अनुसार अयोध्या में एक निम्न जाति का व्यक्ति रहता था।
उसके पास कुछ धन था, इसलिए वह घमंडी हो गया। लेकिन उसका धन समय के साथ खत्म हो गया। इसलिए वह रोजगार की तलाश में अयोध्या से उज्जैन पहुंच गया।
यहां उसके जीवन-यापन करने की समस्या से छुटकारा मिल गया। उज्जैन में ही उसकी मुलाकात वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण से हुई। वह भी शिव भक्त था। लेकिन वह उस व्यक्ति की तरह देवताओं की निंदा नहीं करता था। एक दिन ब्राह्मण ने उस व्यक्ति को एक शिवपूजन की विधि बताई। लेकिन उस व्यक्ति को बात समझ नहीं आई।
ब्राह्मण जानता था कि वह व्यक्ति धर्म-कर्म और भगवान में कोई रुचि नहीं रखता है। लेकिन वह भगवान के प्रति अच्छे भाव नहीं रखता था। एक समय की बात है।
वह व्यक्ति शिव मंदिर में शिवजी का नाम जप रहा था। तभी किसी कारण से गुरुदेव वहां पहुंचे। उस व्यक्ति ने उन्हें देखा लेकिन उसने घमंड के कारण उन्हें प्रणाम तक नहीं किया। लेकिन गुरुदेव अत्यंत दयालु थे। शिष्ट और अनिष्ट व्यवहार से उन्हें क्रोध नहीं आता था।
लेकिन उसी समय एक आकाशवाणी हुई, 'तुम्हारे ब्राह्मण गुरुदेव अत्यंत दयालु हैं और तुम उनकी निंदा करते हो गुरु से ईर्ष्या करने के कारण तुम्हें करोड़ों वर्षों तक नर्क भोगना होगा।'
शाप की बात सुन गुरुजी एक बार फिर दुःखी हो गए और उन्होंने शिवस्तुति आरंभ कर दी। भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, इसे जल्द ही शाप से मुक्ति मिल जाएगी।
उस व्यक्ति ने कई जन्मों के बाद जन्म लिया और मृत्यु हुई। अंत में उसने एक ब्रह्मण के घर जन्म लिया। पूर्व जन्म में जिसकी वह निंदा करता था लेकिन इस जन्म में उसके मुंह में सिर्फ राम नाम का जप रहता था। उसके पिता ने उसे पढ़ाया लेकिन उसकी पढ़ाई में मन नहीं लगता था।
एक दिन वह व्यक्ति भगवान राम का जप करते हुए। सुमेरू पर्वत की चोटी पर जा पहुंचा। वहां लोमश ऋषि एक पेड़ की छाया में बैठे थे। ब्राह्मण ने आदर से उन्हें प्रणाम किया। ऋषि से वो सगुण भक्ति निर्गुण भक्ति पर बहस करने लगा।
ऋषि क्रोधित हो गए, उन्होंने कहा, हे मूर्ख तू बहस करता है। तू इसी समय चांडाल पक्षी हो जा। फिर क्या, ब्राह्मण तुरंत कौआ हो गया, लेकिन कौआ होकर भी उसकी राम-नाम के प्रति भक्ति नहीं गई।