आत्मा का एक सर्वश्रेष्ठ गुण है सच्चाई या सत्यता
अगर हम आध्यात्मिक रूप से तरक्की करना चाहते हैं, तो हमें अपनी आत्मा को अधिक से अधिक जानना चाहिए।
आत्मा का एक सर्वश्रेष्ठ गुण है सच्चाई या सत्यता। आत्मा सच्चाई के रास्ते पर चलती है, पर मन धोखाधड़ी और झूठ का खेल खेलता है। आध्यात्मिक उन्नति के लिए हमें अपनी आत्मा को पहचानना होगा। इसके लिए हमें सच्चाई का सद्गुण धारण करना होगा। हमारे पास महात्मा गांधी का उदाहरण है, जिन्होंने सच्चाई का रास्ता अपनाया।
देश को आजादी दिलाने के लिए अहिंसक आंदोलनों के दौरान, एक बार उन्हें एक जेल में बंद कर दिया गया। जेल के खास नियमों में से एक था कि कैदियों को कोई अखबार या बाहरी संसार की कोई भी खबर नहीं दी जाए। एक बार एक चिकित्सक, जो गांधी जी के मित्र थे, जेल में उनसे मिलने आए। उनके अहिंसक आंदोलन से संबंधित कोई खबर थी, जिसके बारे में चिकित्सक गांधी जी को बताना चाहते थे। चिकित्सक अपने साथ एक अखबार लाए थे। उन्होंने अपनी जेब से कुछ पर्चे निकाले और उन्हें गांधी जी की खाट पर रख दिया। चिकित्सक गांधी जी से उनके स्वास्थ्य और सुविधाओं के बारे में बातें करने लगे। जब चिकित्सक के जाने का समय आया, तो उन्होंने अपने सारे कागज चारपाई से उठाकर जेब में रख लिए, पर अखबार वहीं छोड़ दिया। जब गांधी जी ने अखबार वहां पड़े हुए देखा, तो उन्होंने उसे पढ़ने से मना कर दिया। वास्तव में वे इतने ईमानदार थे कि वे अखबार की ओर मात्र देखकर भी जेल के नियमों का उल्लंघन नहीं करना चाहते थे।
अत: बिस्तर पर पड़े अखबार की ओर से उन्होंने अपनी पीठ कर ली और सारी रात अपनी कोठरी के कोने की
ओर देखते रहे। वे रात भर बैठे रहे और उनका चेहरा कोने की ओर रहा, ताकि वे अखबार को देख या छू न
लें। अगली सुबह, चिकित्सक गांधी जी से मिलने वापस आए। उन्होंने देखा कि अखबार खाट पर वहीं
पड़ा था, जहां वह पिछली रात छोड़ गए थे। चिकित्सक बोले, ‘क्षमा कीजिएगा, मैं गलती से अखबार यहां छोड़
गया।’ गांधी जी के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और उन्होंने उत्तर दिया, हां, आपने मुझे पूरी रात एक कोने में
गुजारने की सजा दे डाली।
गांधी जी की ईमानदारी ऐसी थी कि चाहे किसी ने भी उन्हें अखबार पढ़ते नहीं देखा, तब भी वे बेईमान नहीं होना चाहते थे, क्योंकि उन्हें स्वयं तो पता होता कि कैद के दौरान उन्होंने जेल के नियमों का उल्लंघन किया है। हममें से कितने इस प्रकार की ईमानदारी के साथ जीते हैं? हम यह समझते हैं कि हम दूसरों से अपने कार्य छुपा सकते हैं, पर हम प्रभु से और अपनी आत्मा से कुछ नहीं छुपा सकते। हमें अपने कर्मों के फल को भुगतना पड़ता है। ईमानदारी आत्मा का गुण है। जब भी हमें यह चुनाव करना होता है हम ईमानदार रहें या बेईमान हो जाएं, तो हम अपनी आत्मा की बात सुन सकते हैं या फि र मन की। मन हमें बेईमानी की ओर ले जाता है। इसके लिए वह हमें कई बहाने बताता है।
अगर हम आध्यात्मिक रूप से तरक्की करना चाहते हैं, तो हमें अपनी आत्मा को अधिक से अधिक जानना
चाहिए। अपनी असली अवस्था के नजदीक आने यानी अपने अंतरात्मा के नजदीक आने का अर्थ है कि हम
अपने कार्य-व्यवहार में ईमानदार हो जाएं। अंतर्मन के खजाने शाश्वत हैं और वे सदा हमारे साथ रहेंगे।