सूफी यह मानते हैं कि अल्लाह और ईश्वर दोनों का रंग एक है
यह होली का ही दिन था, जब अमीर खुसरो सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के पास मुरीद होने यानी शिष्य बनने आए थे।
By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 09 Mar 2017 01:30 PM (IST)Updated: Thu, 09 Mar 2017 01:35 PM (IST)
आज रंग है ऐ मां रंग है री मेरे महबूब के घर रंग है री ...
...मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया...
यह होली का ही दिन था, जब अमीर खुसरो सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के पास मुरीद होने यानी शिष्य बनने आए थे। शिष्य बनने के बाद खुसरो जब अपने घर मां का आशीर्वाद लेने के लिए आए, तो उन्होंने उनके पैर छूकर
अपने पीर के लिए यह नजराना पेश किया। यह लगभग साढ़े सात सौ साल पहले की बात है।
दरगाहों पर अमीर खुसरो की कुछ और रचनाएं आज भी बड़ी श्रद्धा से गाई जाती है। खुसरो गाते हैं :
...खेलो रे चिश्तियों होरी खेलो, ख्वाजा निजाम के भेस में आयो... उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से सर्व-धर्म
समभाव का संदेश दिया। अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, जाति-पाति के भेद से परे सूफियों के लिए होली-दिवाली और ईद में कभी कोई अंतर नहीं रहा। सूफी यह मानते हैं कि अल्लाह और ईश्वर दोनों का रंग एक है। प्रेम का रंग
एक है। इबादत का रंग एक है। अमीर खुसरो के बोल आसान और आत्मीय हैं, इसीलिए ये लोगों की जुबान पर आसानी से चढ़कर दिल तक उतर गए।
अमीर खुसरो के अलावा, कई अन्य सूफी शायरों ने होली की मस्ती पर गीत रचे हैं। सूफी शायर पीर जामिन निजामी लिखते हैं : ...बसंती रंग में देखो निजामी पीर के जलवे कि होली रंग लाती है निजामुद्दीन चिश्ती का...।
-युसूफ खान निजामी, कव्वाली गायक
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