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शक्ति का अद्भुत प्रभाव

हर स्थिति में शक्ति की दो विरुद्ध शक्तियां काम करती रहती हैं। दोनों में संघर्ष है। दोनों में खिंचाव है। दोनों में विरोधाभास है। दोनों में द्वंद्व है। और जब कभी इन्हें रोका जाता है, तो ये धीरे-धीरे एक बड़ा रूप ले लेती हैं, जो विस्फोट का कारण बन जाती हैं। स्वाभाविक द्वंद्व ही आपसी टकराव और उत्तरोत्तर विकास का कारण बनता है। आपसी प्र

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 02 Oct 2014 12:20 PM (IST)Updated: Thu, 02 Oct 2014 03:12 PM (IST)
शक्ति का अद्भुत प्रभाव

हर स्थिति में शक्ति की दो विरुद्ध शक्तियां काम करती रहती हैं। दोनों में संघर्ष है। दोनों में खिंचाव है। दोनों में विरोधाभास है। दोनों में द्वंद्व है। और जब कभी इन्हें रोका जाता है, तो ये धीरे-धीरे एक बड़ा रूप ले लेती हैं, जो विस्फोट का कारण बन जाती हैं। स्वाभाविक द्वंद्व ही आपसी टकराव और उत्तरोत्तर विकास का कारण बनता है। आपसी प्रतिरोध के कारण तनाव हमेशा बना रहता है। हर स्थिति में, हर संभावनाओं में, प्रत्येक स्तर पर शक्ति के अनुरूप, शक्ति के प्रतिरूप विरुद्ध शक्ति का संघर्ष बना रहता है।

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घर का काम हो या बाहर का। प्रेम हो या नफरत। लगाव हो या दुराव। सांसें लेना हो या प्राण-अपान की क्रिया। इन सबमें यह स्थिति बनी रहती है। सुख-दुख का बोध और मान-अपमान का बोध। अपने पराए का ज्ञान। इन सभी परिस्थितियों में शक्ति का मौलिक विरोधाभास बना रहता है।

दो शक्तियां मनुष्य देह में प्रवाहित हो रही हैं- वाम और दक्षिण रूप में। ये परस्पर विरुद्ध शक्तियों की प्रतीक हैं। इन दो चक्षुओं के सदृश अन्य इंद्रियां भी विरुद्ध शक्ति की प्रतीक हैं, पर यह वाम और दक्षिण शक्तियां प्रधान हैं। काल के आवर्तन में और गुण के आवर्तन में भी शक्तियों की प्रधानता बनी रहती है। कभी वाम शक्ति प्रधान हो जाती है और कभी दक्षिण शक्ति। मनुष्य देह के प्राणमय कोश और मनोमय कोश में संसार के सभी देशों में अणु-परमाणु में भी इन विरुद्ध शक्तियों का प्रवाह है, क्रिया है। इस विरुद्ध शक्ति को पार किए बगैर स्थिरता नहीं प्राप्त हो सकती। एकाग्रता नहीं मिल सकती और इसे पार करने के बिना शांति, प्रेम, समन्वय, मैत्री आदि किसी भी सदगुण के विकास की संभावना नहीं रहती।

इसलिए मनुष्य को अपने जीवन पथ पर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए-इन दो प्रतिद्वंद्वी शक्तियों को एक करना पड़ेगा। इस कार्य के लिए ध्यान ही वह एकमात्र मार्ग है जिसके माध्यम से हम दो परस्पर विरुद्ध शक्तियों को एक कर सकते हैं और अपने जीवन के अंतिम लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं और जीवन में शांति प्राप्त कर सकते हैं। उन जीवों को जिनका परम लक्ष्य ही परमात्म तत्व को प्राप्त करना है, उन्हें इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ध्यान के माध्यम से शक्ति का अर्जन करना चाहिए।


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