इन दैत्यों के बिना अधूरी होती रामायण!
पौराणिक कहानियों में दैव, दानव और मानव का जिक्र होता है। यहां मानव वो होते थे, जिनके पास कोई दिव्य शक्ति नहीं होती थी। लेकिन देवों और दानवों के पास मायावी शक्तियां होती थीं।
पौराणिक कहानियों में दैव, दानव और मानव का जिक्र होता है। यहां मानव वो होते थे, जिनके पास कोई दिव्य शक्ति नहीं होती थी। लेकिन देवों और दानवों के पास मायावी शक्तियां होती थीं। जिन्हें वह कठिन तप या फिर तंत्र-मंत्र के जरिए हासिल करते थे।
दानवों को पहले 'रक्ष' कहा जाता था। 'रक्ष' यानी जो लोगों की रक्षा करें। राक्षस पहले रक्षा करने के लिए नियुक्त हुए थे, लेकिन बाद में इनकी आसुरी प्रवृत्तियां इतनी बढ़ गईं कि यह लोगों के संहारक बन गए।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायण' में लंकापति रावण का उल्लेख मिलता है। वह रामायण का खलनायक था, जो विद्वान होने के साथ पराक्रमी भी था। उसका पुत्र मेघनाद भी बलशाली दैत्य था। वहीं कुंभकर्ण यानी रावण का भाई था। वह भी दैत्य जाति के लिए एक वरदान स्वरूप ही था।
इनके अलावा ताड़का, मारीच, सुरसा के बारे में तो अमूमन हम जानते ही हैं, लेकिन त्रेतायुग में कुछ ऐसे भी दानव थे जिसका जिक्र कम ही मिलता है।
अहिरावण: अहिरावण पातालनिवासी था। वह रावण का परममित्र था। अहिरावण ने प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण किया था। बाद में हनुमानजी ने प्रभु और उनके अनुज को अहिरावण का अंत किया था।
खर और दूषण: ये दोनों रावण के सौतेले भाई थे। ऋषि विश्रवा की 2 और पत्नियां थीं। खर, पुष्पोत्कटा से और दूषण, वाका से उत्पन्न हुए थे जबकि कैकसी से रावण का जन्म हुआ था। खर-दूषण को भगवान राम ने मारा था। खर और दूषण के वध की घटना रामायण के अरण्यक कांड में मिलती है।
कालनेमि: यह रावण का विश्वसनी अनुचर था। जब युद्ध में लक्ष्मण जी को शक्ति लगने से वे बेहोश हो गए थे, तब हनुमान को तुरंत ही संजीवनी लाने का कहा गया था।
हनुमानजी जब द्रोणाचल की ओर चले तो रावण ने कालनेमि को भेजा। कालनेमि ने अपनी माया से तालाब, मंदिर और सुंदर बगीचा बनाया और एक ऋषि का वेश धारण कर मार्ग में बैठ गया। हनुमानजी उस स्थान को देखकर वहां जलपान के लिए रुक गए। जैसे ही वह तालाब में उतरे तो तालाब में प्रवेश करते ही एक मगरी ने अकुलाकर हनुमानजी का पैर पकड़ लिया। इस तरह हनुमानजी ने उसका अंत कर दिया।
सुबाहु: ताड़का के पति का नाम सुन्द था। और उनके दो पुत्र थे सुबाहु और मारीच। सुबाहु भयानक दैत्य था। विश्वामित्र एक यज्ञ के दौरान राजा दशरथ से अनुरोध कर एक दिन राम और लक्ष्मण को अपने साथ सुंदर वन ले गए। राम ने ताड़का का और विश्वामित्र के यज्ञ की पूर्णाहूति के दिन सुबाहु का भी वध कर दिया था।
कबंध: सीता की खोज में जब राम-लक्ष्मण उन्हें दंडक वन में खोज रहे थे तब एक विचित्र दानव दिखा जिसका मस्तक और गला नहीं था। उसकी केवल एक ही आंख ही नजर आ रही थी।
कबंध ने राम-लक्ष्मण को एकसाथ पकड़ लिया। राम और लक्ष्मण ने कबंध की दोनों भुजाएं काट डालीं। मृत्यु से पहले कबंध ने बताया, 'मैं दनु का पुत्र कबंध बहुत पराक्रमी तथा सुंदर था। राक्षसों जैसी भीषण आकृति बनाकर मैं ऋषियों को डराया करता था इसीलिए मेरा यह हाल हो गया था।'