Move to Jagran APP

शारदीय नवरात्र: मां कहीं पहनेंगी बंगाली साड़ी तो कहीं..

इस वक्त देवी प्रतिमाओं को बनाने वाले कलाकार दिन रात की परवाह किए बिना मूर्तियां पूरी करने में तल्लीन हैं। देवनाथपुरा स्थित विश्वनाथ मूर्ति कला भवन के गोपाल चंद्र डे बताते हैं कि पांच महीने पहले से ही मां की प्रतिमाएं बननी शुरू हो जाती हैं। अब तक तो ज्यादातर मूर्तियां तैयार भी हो चुकी हैं। लगभग 2

By Edited By: Published: Tue, 23 Sep 2014 12:57 PM (IST)Updated: Tue, 23 Sep 2014 12:59 PM (IST)
शारदीय नवरात्र: मां कहीं पहनेंगी बंगाली साड़ी तो कहीं..

वाराणसी। इस वक्त देवी प्रतिमाओं को बनाने वाले कलाकार दिन रात की परवाह किए बिना मूर्तियां पूरी करने में तल्लीन हैं। देवनाथपुरा स्थित विश्वनाथ मूर्ति कला भवन के गोपाल चंद्र डे बताते हैं कि पांच महीने पहले से ही मां की प्रतिमाएं बननी शुरू हो जाती हैं। अब तक तो ज्यादातर मूर्तियां तैयार भी हो चुकी हैं। लगभग 28 संस्थाओं की प्रतिमाओं का आर्डर हमारे पास है। टाउनहाल स्थित सार्वजनिक दुगरेत्सव समिति की प्रतिमा में इस बार मां के साथ ही बजरंगबली, कालभैरव व शिव जी की प्रतिमा भी बना रहे हैं।

loksabha election banner

डे बाबू बताते हैं कि महिलाओं के साथ बढ़ते अपराध को फोकस कर बनाई गई है सुंदरपुर दुगरेत्सव समिति की मूर्ति। इसमें एक महिला, भगवान नीलकंठ से अपराध रोकने की याचना कर रही है। सदर बाजार, जागृति क्लब की प्रतिमा बंगाल शैली में बनाई जा रही है। इसमें मां का ब्रह्मचारिणी स्वरूप है। मां ने बंगाली विद्या से साड़ी पहनी है और उनके केश खुले हुए हैं। 1इसके अलावा न्यू इंडियन क्लब, मंसा राम फाटक, चेतगंज की अष्टभुजी प्रतिमा भी लगभग तैयार है। इन सभी प्रतिमाओं के साथ ही इस बार एकता क्लब, भोजूबीर के लिए मां की बाघंबरी वेश धारण किए प्रतिमा बनकर तैयार है। सरस्वती, गणोश, कार्तिकेय की भी प्रतिमा बाघंबरी परिधान में है। रुद्राक्ष की माला से श्रृंगार है।

मैदा से चिपकाते हैं जेवर-

लकड़ी व बांस का फ्रेम तैयार कर पुआल से ढांचे को आकार देते हैं। गंगा की चिकनी मिट्टी से लेपन करने के बाद तीन तरह की मिट्टी के साथ पुआल व भूसा डालकर मूर्ति पर लगाते हैं, इससे मूर्ति ठोस हो जाती है। सूखने के बाद बलुई मिट्टी से मूर्ति का गठन होता है। सूती कपड़े से लेपन किया जाता है। गेरु, रामरज, शंख चूरा (मोती के रंग के लिए) इमली का पाउडर, बेल का बीज मिलाकर रंग तैयार किया जाता है। आरारोट को उबालकर रंग में डालने से रंग पक्का होता है और मैदा के आटे से जेवर चिपकाया जाता है यानी गोंद के लिए मैदे का प्रयोग करते हैं। गहना कोलकाता से मंगवाते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.