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त्रयंबक का रहस्‍य: जानें क्‍या होता है शिव की तीसरी आंख का अर्थ

शिवजी के साथ उन्‍हें तीन प्रतीक त्रिनेत्र, त्रिशूल और नंदी अवश्‍य होते हैं। क्‍या आप जानते हैं की उनका रहस्‍य क्‍या है।

By molly.sethEdited By: Published: Thu, 13 Jul 2017 03:22 PM (IST)Updated: Thu, 13 Jul 2017 03:22 PM (IST)
त्रयंबक का रहस्‍य: जानें क्‍या होता है शिव की तीसरी आंख का अर्थ
त्रयंबक का रहस्‍य: जानें क्‍या होता है शिव की तीसरी आंख का अर्थ

शिव को जाने उनके प्रतीकों से

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सावन को भगवान शिव का महीना कहा जाता है। इस माह में लोग शिव की आराधना कर उन्‍हें प्रसन्‍न करते हैं। शिवजी के साथ उनके तीन प्रतीकों की भीअराधना की जाती है। उनके तीन प्रतीक हैं उनका तीसरा नेत्र जिसके कारण उन्‍हें त्रयंबक कहा जाता है, उनका त्रिशूल जो सदैव उनके साथ रहता है और नंदी जो उनका वाहन है। क्‍या आपने सोचा है कि शिव के इन तीनों प्रतीकों का महत्‍व क्‍या है। आइये जाने शिव के प्रतीकों के अर्थ। 

त्रयंबक यानि तीसरा नेत्र

आप दो आंखों से बाहरी दुनिया को देखते हैं जबकि शिव की तीसरी आंख आपको अपने भीतर देखने का संदेश देती है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं, वहीं अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि बोध का एक दूसरा आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। बोध के विकास के लिए आपकी ऊर्जा को विकसित होना होगा। योग की सारी प्रक्रिया यही है कि आपकी ऊर्जा को इस तरीके से विकसित किया जाए और सुधारा जाए कि आपका बोध बढ़े और तीसरी आंख खुल जाए। आपकी दो आंखें दो दृश्‍येंद्रियां हैं जबकि तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक है। 

त्रिशूल

शिव का त्रिशूल जीवन के तीन मूल तत्‍वों का प्रतीक है। जिसे रुद्र, हर और सदाशिव, या फिर  इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना भी कहा जाता है और ये ही मानव तंत्र में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियों बाईं, दाहिनी और मध्य के बारे में भी है। आप इन सभी के बीच संतुलन बना कर ही चेतनता की चोटी पर पहुंच सकते हैं। ये सब तभी संभव है जब आप अपने अंदर एक स्थिर अवस्था बना लें।

शिव का वाहन नंदी 

नंदी अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में प्रतीक्षा को सबसे बड़ा गुण माना गया है क्‍योंकि इससे उत्‍पन्‍न होता है धैर्य और ध्‍यान का चरम स्‍तर। नंदी शिव का सबसे नजदीकी है क्योंकि उसमें ये विशिष्‍ट गुण है। आराधना और पूजा का महत्‍व तभी है जब आप बस पूरी निष्‍ठा से उसे करते रहें, बिना अपेक्षा के, ना स्वर्ग जाने की कोशिश, ना मोक्ष की लालसा ना और कुछ इच्‍छा पूर्ती की अपेक्षा बस प्रतीक्षा कि प्रभु आयेंगे और उससे उपजा धैर्य की जो आपके योग्‍य है वो प्राप्‍त होगा। यही नंदी की विशेषता है और यही उसके शिव से अभिन्‍न होने का रहस्‍य।


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