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विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक हैं

यह क्या है, यह विज्ञान है, मैं क्या हूँ यह अध्यात्म है। विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक है। पुरानी जड़ों पर ध्यान देना और नये ज्ञान को आगे बढ़ाना विश्व कल्याण के लिये आवश्यक है। यह बातें बीएचयू के स्वतन्त्रता भवन में आयोजित ‘‘पुरातन छात्र समागम’’ में अध्यात्मिक

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2015 03:41 PM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2015 03:44 PM (IST)
विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक हैं


वाराणसी यह क्या है, यह विज्ञान है, मैं क्या हूँ यह अध्यात्म है। विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक है। पुरानी जड़ों पर ध्यान देना और नये ज्ञान को आगे बढ़ाना विश्व कल्याण के लिये आवश्यक है। यह बातें बीएचयू के स्वतन्त्रता भवन में आयोजित ‘‘पुरातन छात्र समागम’’ में अध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए कही। कार्यक्रम में विज्ञान एवं धर्म महामना की दृष्टि विषय पर सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा प्रश्न पूछना विज्ञान है और हमारे भारती संस्कृति और परम्परा में प्रश्न और तर्कों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भारतीय संस्कृति ने प्रत्येक विषयों को तर्क और प्रश्नों के कसौटी पर कसकर ही आत्मसात किया है।

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श्री श्री ने बताया कि भारत हमेशा तभी स्वतन्त्र और संप्रभू राष्ट्र हो सकता है जब वह ज्ञान के साथ अपने सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को समाहित करके आगे बढ़े । भारतीय समाज इसमें सर्वथा आगे रहा है । भारत में हमेशा विज्ञान और अध्यात्म को बढ़ावा दिया है। उन्होंने तत्व ज्ञान इन्द्रियों से प्राप्त ज्ञान व बुद्धि से प्राप्त ज्ञान में सबसे श्रेष्ठ बुद्धि से प्राप्ति ज्ञान को बताया। अध्यात्मिक गुरु ने इस बात पर बल दिया कि भारत का धर्म अन्य धर्मों से अलग है क्योंकि यह प्रत्येक विषयों को तर्क के आधार पर समायोजित करता है। इसके पूर्व विशिष्ट अतिथि भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार पद्विभूषण डॉ0 आर0 चिदम्बरम् ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि चरित्र के बिना ज्ञान खतरनाक होता है और इस विश्वविद्यालय का ध्येय ज्ञान के साथ-साथ चरित्र निर्माण करना भी है। उन्होंने आगे कहा कि मैं इस विश्वविद्यालय का छात्र नहीं रहा हूँ लेकिन मानद् डाक्ट्रेट की उपाधि जो कि इस विश्वविद्यालय से प्राप्त हुई है मुझे यहां का छात्र बनाती है। आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को बचाकर ही हम भारत को न केवल विकसित बल्कि महाराष्ट्र भी बना सकते हैं।
इस समागम में देश विदेश से लगभग दो हजार पूर्व छात्र उपस्थित हुए और अपने पुराने दिनों को याद करते हुए व अपने सहपाठियों मिलकर एकपल अपनी भावनाओं को नहीं रोक पाये।


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