कहते हैं, वृंदावन के निधि व बरसाना के गहवरवन में आज भी आती हैं राधा
ब्रज के कण-कण में कृष्ण हैं तो यहां की रज में राधा। राधारानी गुप्त तत्व हैं। वह श्रीकृष्ण में ही हैं। राधाजी को समझने के लिए कृष्ण और कृष्ण को समझने के लिए राधारानी को समझना पड़ेगा। कहते हैं वृंदावन के निधि व और बरसाना के गहवरवन में राधा आज
मथुरा। ब्रज के कण-कण में कृष्ण हैं तो यहां की रज में राधा। राधारानी गुप्त तत्व हैं। वह श्रीकृष्ण में ही हैं। राधाजी को समझने के लिए कृष्ण और कृष्ण को समझने के लिए राधारानी को समझना पड़ेगा। कहते हैं वृंदावन के निधि व और बरसाना के गहवरवन में राधा आज भी आती हैं। कान्हा के उपासक भी राधे-राधे बोल अपने आराध्य की उपासना करते हैं। अब ब्रज में कृष्ण की प्रतिमाओं को लेकर संग्रहालय का प्रस्ताव आगे बढ़ा है, तब यह सामने आया है कि संस्कृति विभाग के पास राधा-कृष्ण की एक भी प्राचीन मूर्ति नहीं है। इससे प्रस्तावित कृष्ण संग्रहालय में दोनों एक साथ नजर नहीं आएंगे।
ब्रिटिश हुकूमत में 1862 से ब्रज की खुदाई की गई थी जो 1974 तक चली। इस दौरान यहां से भगवान महावीर और भगवान बुद्ध की अनेक मूर्तियां मिलीं। इसके साथ ही हिंदू देवी-देवता भगवान श्रीकृष्ण, बलराम, रुक्मणि, शिव, लक्ष्मीजी, दशावतार, गणोशजी आदि की मूर्तियां निकलीं। लेकिन तीन लोक के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण की शक्ति राधाजी की मूर्ति नहीं निकली। मथुरा के संग्रहालय में राधाजी की मूर्ति न होना परेशानी का कारण बन गया है। कारण है कि मथुरा में श्रीकृष्ण संग्रहालय का प्रस्ताव तैयार किया गया है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का मूर्तियों और चित्रों के माध्यम से प्रदर्शन किया जाएगा।
संग्रहालय में भगवान श्रीकृष्ण की करीब आधा दर्जन से ज्यादा प्राचीन मूर्तियां हैं जिनका प्लास्टर ऑफ पेरिस का मॉडल बनाकर संग्रहालय में रखा जाएगा। बलराम आदि की मूर्तियां के मॉडल भी बनवाए जाएंगे। लेकिन राधाजी का कोई प्राचीन मूर्ति न होने के कारण आधुनिक मूर्ति का ही मॉडल बनवाने की तैयारी संग्रहालय कर रहा है।
संग्रहालय के सहायक निदेशक डॉ. एसपी सिंह बताते हैं कि संग्रहालय में राधाजी की कोई प्राचीन मूर्तियां नहीं हैं। कृष्ण का प्रमाण पुरातत्व में भी मथुरा से मिला। भगवान श्रीकृष्ण का धर्मग्रंथों में ही नहीं बल्कि पुरातत्व में प्रमाण मथुरा से मिला है। गताश्रम मंदिर से मिले शिलापट में श्रीकृष्ण जन्म की लीला को उकेरा गया है। यह शिलापट 2000 वर्ष पुराना है। कृष्ण में ही राधा-ब्रज के विरक्त संत रमेश बाबा ने कहा है कि राधारानी गुप्त तत्व हैं। वह श्रीकृष्ण में ही हैं। राधाजी को समझने के लिए कृष्ण और कृष्ण को समझने के लिए राधारानी को समझना पड़ेगा। कहते हैं वृंदावन के निधि व और बरसाना के गहवरवन में राधा आज भी आती हैं।
संग्रहालय में नहीं राधाजी की कोई मूर्ति-
संग्रहालय प्रशासन राधाजी के जीवन चरित्र का वर्णन कलमबद्ध कराएगा। ये जीवन चरित्र ही संग्रहालय की धरोहर होगा। कारण है कि राधाजी के रास की लीला भगवान श्रीकृष्ण के ब्रज में रहने के समय तक ही मिलती हैं। इसके बाद राधाजी का स्वरूप क्या रहा इसकी जानकारी यहां आने वाले पर्यटकों को यह ग्रंथ देगा।