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उत्‍तराखंड के इस स्‍थान पर इलाहाबाद से पहले होता है गंगा-यमुना का संगम, पढ़ें खबर

उत्‍तराखंड में एक स्‍थान ऐसा भी है, जहां प्रयागराज इलाहाबाद से पहले गंगा और यमुना का संगम होता है। जी हां, इन दोनों नदियों की जलधाराएं उत्तरकाशी जनपद के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल गंगनानी में एक दूसरे से मिलती हैं।

By sunil negiEdited By: Published: Fri, 12 Feb 2016 10:59 AM (IST)Updated: Sat, 13 Feb 2016 09:06 AM (IST)
उत्‍तराखंड के इस स्‍थान पर इलाहाबाद से पहले होता है गंगा-यमुना का संगम, पढ़ें खबर

शैलेन्द्र गोदियाल, उत्तरकाशी। वैसे तो प्रयागराज इलाहाबाद में गंगा और यमुना का संगम होता है तथा इलाहाबाद से ही एक साथ मिलकर गंगासागर तक यह दोनों नदी सफर तय करती हैं, लेकिन प्रयागराज से पहले इन दोनों नदियों की जलधाराएं उत्तरकाशी जनपद के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल गंगनानी में एक दूसरे से मिलती हैं।

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प्राचीनकाल से जिले की यमुनाघाटी क्षेत्र के यमुना तट पर गंगनानी नामक स्थान पर स्थित प्राचीन कुंड से गंगा की जलधारा निकलकर यमुना के साथ मिलती है। इसके साथ ही यहां पर केदार गंगा भी गंगा व यमुना के साथ मिलकर संगम बनाती है, जिससे यह स्थान त्रिवेणी संगम के रूप में भी प्रसिद्ध है। प्राचीनकाल से चली आ रही क्षेत्र के लोगों में इस धार्मिक स्थान को लेकर प्रयागराज जैसी ही आस्था आज भी विद्यमान है।

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 95 किलोमीटर दूर बड़कोट के निकट यह यमुनोत्री राजमार्ग पर स्थित है प्रसिद्ध धार्मिक स्थल गंगनानी। जहां यमुना के तट पर विद्यमान प्राचीन कुंड से भागीरथी की जलधारा निकली है तथा यमुना व केदार गंगा में मिलकर संगम बनाती है।

इस प्राचीन कुंड को लेकर मान्यता है कि गंगनानी के निकट स्थित थान गांव में भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि की तपस्थली थी, जहां ऋषि तपस्यारत थे। यहां पूजा-अर्चना के लिए ऋषि जमदग्नि हर रोज उत्तरकाशी से गंगाजल लेकर आया करते थे और जब वे वृद्ध हुए तो उनकी पत्नी रेणुका पूजा के लिए गंगाजल लाया करती थी।

कई कोस दूर गंगाजल के लिए गंगाघाटी में जाना पड़ता था। वहीं, बड़कोट में रेणुका की बहन बेणुका का पति राजा सहस्रबाहु जमदग्नि ऋषि से ईष्या करता था तथा गंगाजल लेने गंगाघाटी में जाते हुए रेणुका को सहस्रबाहु परेशान करता था। जिस पर जमदग्नि ऋषि ने अपने तप के बल से गंगा भागीरथी की एक जलधारा को यमुना के तट पर स्थित गंगनानी में ही प्रवाहित करवा दिया।

तब से यहां इस प्राचीन कुंड से गंगा की जलधारा अविरल प्रवाहित हो रही है। ऋषि जमदग्नि की तपस्थली थान गांव में आज भी उनका मंदिर एवं यहां उस समय से कल्प वृक्ष भी मौजूद है। जो इस मान्यता को पुख्ता कर देता है।

जमदग्नि ऋषि मंदिर के पुजारी शांति प्रसाद डिमरी बताते हैं कि जमदग्नि ऋषि ने अपने तप के बल से गंगनानी में गंगा की जलधारा को प्रवाहित करवाया था। तब से लेकर आज तक इस स्थान को पवित्र तीर्थस्थल के रूप में क्षेत्र के लोग मानते हैं तथा प्रत्येक धार्मिक पर्व पर क्षेत्र से लोग देवी-देवताओं की डोलियों के साथ यहां स्नान करने पहुंचते हैं।

एक जैसी रहती है जल की प्रकृति
प्रसिद्ध धार्मिक स्थल गंगनानी में स्थित प्राचीन कुंड से निकलने वाले जल की प्रकृति पूरी तरह गंगा भागीरथी जैसी ही है। गंगा घाटी में जैसे ही गंगा जल का जल स्तर कम होता है, तो दूसरी ओर यमुनाघाटी में स्थित इस कुंड में भी जल का स्तर कम हो जाता है।

बरसात के मौसम में गंगा भागीरथी का जल मटमैला रहता है तथा उस दौरान गंगनानी इस कुंड से निकलने वाली जल धारा से भी मटमैला पानी निकलता है। जो संगम को लेकर प्राचीन काल से लोगों की चली आ रही इस आस्था और विश्वास को और भी पक्का कर देता है। त्रिवेणी संगम के रूप में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल गंगनानी को क्षेत्र के लोग इलाहाबाद की तर्ज पर विकसित करने की मांग कर रहे हैं।

वसंस पंचमी पर लगता है मेला
प्रसिद्ध स्थल गंगनानी में वर्षों से कुंड की जातर (कुंड का मेला) लगता आ रहा है।, लेकिन बीते एक दशक से इस मेले में तमाम व्यवस्थाओं को जुटाने के लिए इस मेले का आयोजन जिला पंचायत करवा रहा है। हर साल वसंत पंचमी पर लगने वाले इस मेले को गंगनानी बसंतोत्सव मेले के रूप में मनाते हैं।

इस वर्ष भी पूर्व की भांति यह मेला 13 फरवरी से शुरू होगा। तीन दिनों तक चलने वाला यह मेला 15 फरवरी तक चलेगी। मेले में रवांई, जौनपुर, जौनसार सहित अन्य क्षेत्रों के दूर-दूर गांव से लोग यहां पहुंचते हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष जशोदा राणा ने कहा कि गंगनानी मेले की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
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