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संतों की साधना के अलग-अलग रूप

सिंहस्थ में संतों की साधना के अलग-अलग रूप देखने को मिल रहे हैं। अभिनंदन, पूजन को लेकर भी अनूठे तरीके अपनाए जा रहे हैैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 20 Apr 2016 10:04 AM (IST)Updated: Wed, 20 Apr 2016 10:15 AM (IST)
संतों की साधना के अलग-अलग रूप

उज्जैन। सिंहस्थ में संतों की साधना के अलग-अलग रूप देखने को मिल रहे हैं। अभिनंदन, पूजन को लेकर भी अनूठे तरीके अपनाए जा रहे हैैं। श्री हरि गुरुचांद शांति मिशन के अनुयायी भूखी माता क्षेत्र में अपना कैंप लगाए हैं। इसमें हर जत्थे का स्वागत आंखों में प्रेम व भक्ति का आंसुओं के साथ जमीन पर लुढ़ककर किया जाता है।

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पूजा स्थल तक जाने के साथ ही महिला व पुरुष ढोेल व मृदंग बजाते हुए जत्थे को शिविर में लाते हैं। श्री हरि गुरुचांद शांति मिशन के महंत श्री गोकुलानंद महाराज बताते हैं कि मानव से हरि के मिलन को लेकर इस तरीके की परंपराएं साधना में जरूरी हैं।

देर रात लगभग 11.30 बजे जब कोटा राजस्थान से एक जत्था इस मिशन के पड़ाव पर पहुंचा तो पूरे पंडाल में ढोल, मृदंग बजन लगे। इन वाद्यों को बजाने की महिला व पुरुषोें का जो तरीका था वह रोमांचित कर देने वाला था। पंडाल के मुख्य द्वार पर ही पूरे जत्थे को रोककर स्तुति की गई।

फिर आरती उतारी गई। ढोल और मृदंग की आवाज के बीच देर तक पंडाल के भक्त आंखों में आंसू और दोनों हाथों को आकाश की ओर खड़ा जयघोष कर रहे थे। फिर एक साधक आगंतुकों के पैरों में लौटने लगा और ढोल मृदंगों के साथ-साथ ही लुढ़कते हुए पड़ाव के पूजन स्थल तक पहुंचा। इस बीच सभी महिला पुरुष साधक जोर-जोर से जयघोष करते हुए जत्थे को प्रवेश कराने लगे।

नजारा यह था कि देर रात वहां दर्शकों का जमघट लग गया। महंत गोकुलनंद जी ने बताया कि साधना, पूजन, अभिनंदन, सत्संग के हमारे अपने तरीके हैं। जो हालात के साथ हमें आनंद देते हैैं। इस मिशन की उत्पत्ति श्री हरि चांद ठाकुर के प्रयासों से बांग्लादेश में हुई थी। अब यह संपूर्ण बंगाल, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित विदेशों में भी फैल रहा है।

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