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नासिक कुंभ में छिन सकती सच्चिदानंद की पदवी

बीयर बार और डिस्को संचालक सचिन दत्ता उर्फ स्वामी सच्चिदानंद की महामंडलेश्वर की पदवी शायद चंद दिनों की ही रहे। संत समाज में बड़े विवाद का सबब बने सच्चिदानंद की पदवी छिनने की पटकथा तैयार हो चुकी है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 05 Aug 2015 11:39 AM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2015 11:41 AM (IST)
नासिक कुंभ में छिन सकती सच्चिदानंद की पदवी

इलाहाबाद। बीयर बार और डिस्को संचालक सचिन दत्ता उर्फ स्वामी सच्चिदानंद की महामंडलेश्वर की पदवी शायद चंद दिनों की ही रहे। संत समाज में बड़े विवाद का सबब बने सच्चिदानंद की पदवी छिनने की पटकथा तैयार हो चुकी है।

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नासिक कुंभ में अखाड़ा परिषद की बैठक बुलाकर उन्हें महामंडलेश्र्वर पद से हटाने का एलान किया जा सकता है। वह साधारण संत के रूप में निरंजनी अखाड़ा से जुड़े रहेंगे या नहीं उसका निर्णय बाद में होगा। भविष्य में किसी को आनन-फानन महामंडलेश्र्वर जैसा महत्वपूर्ण पद न दिया जाए, उसका खाका भी नासिक में ही तैयार होगा।

प्रयाग में गुरु पूर्णिमा (31 जुलाई ) पर मठ बाघंबरी गद्दी में भव्यता से परिपूर्ण महामंडलेश्वर पदवी समारोह सनातन मतावलंबियों के साथ-साथ संत समाज में बड़े उठापटक का सबब बना है। डिस्को व बीयर बार संचालक सचिन दत्ता यहां निरंजनी अखाड़ा का महामंडलेश्र्वर बनाए गए थे।

अतीत की बात सामने आते ही सब कुछ बदल गया। देश दुनिया को उनका अतीत पता चला तो जो उनके साथ थे, दूर होने लगे। दो हेलीकाप्टरों से पुष्पवर्षा के बीच सच्चिदानंद को अहम पद मिला था। मंत्री शिवपाल यादव व ओमप्रकाश सिंह भी इन पलों के गवाह बने थे। अब सचिन को महामंडलेश्र्वर बनाने वाले महंत नरेंद्र गिरि संदेह के घेरे में हैं।

विवाद का पटाक्षेप करने की दिशा में सच्चिदानंद के नासिक कुंभ में प्रवेश तथा किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। जानकारों का कहना है कि अब उन्हें पदमुक्त करने की तैयारी पूरी हो चुकी है। 30 अगस्त को नासिक कुंभ में प्रमुख संतों की बैठक बुलाकर सच्चिदानंद को पदमुक्त करने की विधिवत घोषणा की जाएगी।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री स्वामी हरि गिरि ने बताया कि संन्यास त्याग का प्रतीक है, उपभोग का नहीं। अर्से तक कड़ी तपस्या के बाद ही महामंडलेश्वर जैसा पद दिया जाता है। उन्होंने माना कि सच्चिदानंद के मामले में जल्दबाजी हुई है, इसे सुधारा जाएगा। आगे ऐसी गलती न हो उसका भी ख्याल रखा जाएगा। काशी सुमेरुपीठाधीश्र्वर जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती और प्रयाग पीठाधीश्वर जगद्गुरु ओंकारानंद सरस्वती भी इसी तरह का विचार रखते हैं।

निरंजनी अखाड़े में भी उठे विरोध के स्वर

सच्चिदानंद गिरि को महामंडलेश्वर बनाने का निरंजनी अखाड़े में भी विरोध हो रहा है। अखाड़े के राष्ट्रीय सचिव महंत रामानंद पुरी ने इसे बड़ी गलती करार देते हुए कहा कि सच्चिदानंद को अखाड़े से बाहर किया जाएगा। वह सचिन दत्ता को जानते तक नहीं है। इस मामले पर अखाड़े के प्रमुख लोगों से वार्ता की जाएगी।

सवालों से घिरेंगे महंत नरेंद्र गिरि

सच्चिदानंद गिरि उर्फ सचिन दत्ता को निरंजनी अखाड़ा का महामंडलेश्वर बनाने के विवाद में एक तीर से कई निशाने लगाने की तैयारी चल रही है। महंत नरेंद्र गिरि के अखाड़ा परिषद अध्यक्ष बनने को चुनौती दी जा रही है। विरोधी उन्हें हटाने के लिए नए सिरे से खम ठोकने की तैयारी में हैं। वे उन्हें स्वयंभू अध्यक्ष की संज्ञा दे रहे हैं।

महामंडलेश्र्वर कपिलदेव नागा कहते हैं कि सोसायटी एक्ट में बिना अध्यक्ष के नया चुनाव कराने का प्रावधान ही नहीं है। यह तभी हो सकता है जब अध्यक्ष की मृत्यु हो जाए। ऐसे में महंत ज्ञानदास के बिना अखाड़ा परिषद का चुनाव कैसे कराया जा सकता है? इसीलिए हाई कोर्ट ने महंत ज्ञानदास को अध्यक्ष घोषित किया है।

नरेंद्र गिरि के चुनाव को कोई मान्यता नहीं है। उधर, महंत नरेंद्र गिरि इन बातों को तवज्जो नहीं देना चाहते। उनका कहना है कि सभी अखाड़ों के प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से उन्हें अध्यक्ष चुना है। रही बात महंत ज्ञानदास की मौजूदगी की तो उन्हें जानकारी दी गई थी, इसके बावजूद वह जानबूझकर चुनाव प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए।

महंत नरेंद्र इसे कोर्ट के आदेश की अवहेलना बताते हैं। कहा, कोर्ट ने उन्हें वर्ष 2013 कुंभ के बाद चुनाव कराने का निर्देश दिया था, जिसका उन्होंने पालन नहीं किया।

कैलाशानंद का मौन भी चर्चा में

सचिन दत्ता को महामंडलेश्र्वर बनवाने में महामंडलेश्र्वर कैलाशानंद की अहम भूमिका रही है। इस बात को महंत नरेंद्र गिरि भी मान चुके हैं। उनका कहना है कि स्वामी कैलाशानंद ने सच्चिदानंद से वर्षों का संबंध बताया था। विवाद गहराने के बाद स्वामी कैलाशानंद ने जिस तरह मौन धारण कर लिया है, वह चर्चा का विषय है।

प्रश्न यह उठ रहा है कि अगर कैलाशानंद से सचिन दत्ता से पुराना संबंध है तो उन्हें उसके कारोबार की जानकारी रही ही होगी। अखाड़ों के नियम-कानून की अनदेखी करते हुए संन्यास दिलाने के तुरंत बाद पट्टाभिषेक कैसे करा दिया गया। आरोप तो यहां तक है कि करोड़पति सचिन को महामंडलेश्र्वर बनाने में मोटी रकम ली गई है।

राधे मां जूना अखाड़ा में नहीं

जूना अखाड़ा के महामंडलेश्र्वर पद से राधे मां का नाम जुड़ने से अखाड़ा के महासचिव महंत हरि गिरि नाराज हैं। उन्होंने कहा कि राधे मां को हमने पट्टाभिषेक के चंद दिनों बाद ही महामंडलेश्र्वर पद एवं अखाड़ा से बाहर कर दिया है। ऐसे में अखाड़े से उसका नाम जोड़ना अनुचित है। वह नासिक कुंभ में आती हैं या नहीं, इससे हमारे अखाड़े को कोई लेना-देना नहीं है।


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