मनोरम अनुष्ठान का साक्षी बना राजगोपाल
प्रतिष्ठित पीठ राजगोपाल मंदिर मनोरम अनुष्ठान का साक्षी बना। मौका, आध्यात्मिक संस्था मां आनंदमयी परिवार की ओर से रामचरितमानस के अखंड पारायण का था। सामान्य तौर पर पारायण 24 घंटे में पूर्ण होता है पर शास्त्रीय संगीत में रागबद्ध गायन के साथ यह अनवरत 72 घंटे तक संचालित हुआ।
संवादसूत्र, अयोध्या। प्रतिष्ठित पीठ राजगोपाल मंदिर मनोरम अनुष्ठान का साक्षी बना। मौका, आध्यात्मिक संस्था मां आनंदमयी परिवार की ओर से रामचरितमानस के अखंड पारायण का था। सामान्य तौर पर पारायण 24 घंटे में पूर्ण होता है पर शास्त्रीय संगीत में रागबद्ध गायन के साथ यह अनवरत 72 घंटे तक संचालित हुआ।
शुक्रवार को शुरुआत वंदना एवं रामजन्म के प्रसंग से हुई। जैसा प्रसंग उसी के अनुरूप राग में निबद्ध प्रस्तुति। मानस की पंक्तियां अभिव्यक्त होने के साथ संबंधित प्रसंग जीवंत दिखा। रामजन्म और रामविवाह के प्रसंग में उल्लास बिखरा, तो वन गमन के प्रसंग में करुणा प्रवाहित हुई। किष्किंधाकांड एवं सुंदरकांड के प्रसंग में अध्यात्म विवेचित हुआ, तो लंकाकांड के प्रसंग में शौर्य का निरूपण हुआ। समापन तक आते-आते सामने लंका विजय कर लौटे भगवान राम की राजगद्दी का प्रसंग था, तो उसी के अनुरूप राग रामकथा के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम की जीवन यात्र की शुभ्रता विवेचित कर रही थी।
मनोरम अनुष्ठान का रसास्वादन करने के लिए अनुष्ठान के संरक्षक के तौर पर राजगोपाल मंदिर के महंत कौशलकिशोरशरण फलाहारी सहित रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष एवं मणिरामदास जी की छावनी के महंत नृत्यगोपालदास, लक्ष्मणकिलाधीश महंत मैथिलीरमणशरण, रामवल्लभा कुंज के अधिकारी राजकुमारदास, हनुमतसदन के महंत अवधकिशोरशरण, तिवारी मंदिर के महंत गिरीशपति त्रिपाठी, दशरथगद्दी के महंत बृजमोहनदास, हनुमानगढ़ी की उज्जैनिया पट्टी के महंत संतरामदास, महंत अवधेशदास, गुरुकुल महाविद्यालय के प्रबंधक महंत रामकुमारदास, हनुमानगढ़ी के अर्चक पुजारी रमेशदास एवं राजूदास आदि सहित पूरी नगरी की नुमाइंदगी हो रही थी।
अनुष्ठान में विभोर भक्त की तरह फैजाबाद के कई न्यायाधीशों ने भी मय परिवार के शिरकत की। तो अनुष्ठान संयोजक के रूप में पूर्व आईएएस अधिकारी देवदत्त शर्मा और उनके सहयोगी पूरे मनोयोग से भक्ति एवं अध्यात्म की भावधारा प्रवाहित करने में लगे रहे। इस बीच ऐसे भी क्षण आए, जब लोग स्वयं को रोक नहीं सके और राम भक्ति में डूबने के साथ उनके पांव भी जमकर थिरके। व्यवस्थापक के तौर पर इस अनूठे अनुष्ठान में आत्मलीन राजगोपाल मंदिर के अधिकारी डॉ. सर्वेश्वरदास के अनुसार यह मौका रामकथा के श्रवण का ही नहीं बल्कि रामकथा की महाधारा में समरस होने का महानुष्ठान सिद्ध हुआ।
स्वामी युगलानन्यशरण को किया जा रहा याद
अयोध्या: रसिक परंपरा के महान आचार्य एवं प्रतिष्ठित पीठ लक्ष्मणकिला के संस्थापक स्वामी युगलानन्यशरण की 137वीं पुण्यतिथि यूं तो दो दिसंबर को है पर पुण्यतिथि का अनुष्ठान गुरुवार से ही शुरू हो चुका है। स्वामी युगलानन्यशरण रहस्योपासना के अनेक प्रतिनिधि ग्रंथों के प्रणोता माने जाते हैं। उनकी पुण्यतिथि पर संचालित अनुष्ठान इन ग्रंथों के पारायण पर ही केंद्रित है। किला के वर्तमान आचार्य महंत मैथिलीरमणशरण के अनुसार नाम, रूप, लीला एवं धामकांति के पाठ के बाद स्वामी जी प्रणीत संत विनय शतक का संगीतमय पाठ चल रहा है। संत विनय शतक में युगलानन्यशरण ने नाम साधना में निष्ठा रखने वाले नानक, कबीर, सूर, तुलसी जैसे सौ के करीब पूर्वाचार्यों की प्रार्थना को विषय बनाया है।
शीतकाल में ओंकारेश्वर मंदिर में होगी भगवान मद्महेश्वर की पूजा