Move to Jagran APP

Pongal 2019: चार दिनों का उत्‍सव है पोंगल, जाने इसका धार्मिक महत्‍व आैर तिथि

Pongal Festival 2019 14 जनवरी को मनाया जायेगा। तमिलनाडु में पोंगल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के स्वागत के रूप में मनाया जाता है। उनको अन्न धन का दाता मान ये उत्‍सव चार दिनों तक चलता है।

By Molly SethEdited By: Published: Sat, 13 Jan 2018 10:04 AM (IST)Updated: Mon, 14 Jan 2019 09:35 AM (IST)
Pongal 2019: चार दिनों का उत्‍सव है पोंगल, जाने इसका धार्मिक महत्‍व आैर तिथि
Pongal 2019: चार दिनों का उत्‍सव है पोंगल, जाने इसका धार्मिक महत्‍व आैर तिथि

क्‍यों है इसका नाम पोंगल

loksabha election banner

इस त्यौहार का नाम पोंगल इसलिए है क्योंकि इस दिन सूर्य देव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है उसे पगल कहते हैं। तमिल भाषा में पोंगल का एक अन्य अर्थ भी होता है अच्छी तरह उबालना, दोनों ही रूप में इसका एक ही मतलब है, अच्छी तरह उबाल कर सूर्य देवता को प्रसाद भोग लगाना। 

पोंगल का महत्‍व

पोंगल का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह तमिल महीने की पहली तारीख को आरम्भ होता है। इस पर्व के महत्व का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यह चार दिनों तक चलता है। हर दिन के पोंगल का अलग अलग नाम होता है। 

पहली पोंगल- इसको भोगी पोंगल कहते हैं जो देवराज इन्द्र का समर्पित हैं। इसे भोगी पोंगल इसलिए कहते हैं क्योंकि देवराज इन्द्र भोग विलास में मस्त रहनेवाले देवता माने जाते हैं। इस दिन संध्या समय में लोग अपने अपने घर से पुराने वस्त्रकूड़े आदि लाकर एक जगह इकट्ठा करते हैं और उसे जलाते हैं। यह ईश्वर के प्रति सम्मान एवं बुराईयों के अंत की भावना को दर्शाता है। इस अग्नि के इर्द गिर्द युवा रात भर भोगी कोट्टम बजाते हैं जो भैस की सींग का बना एक प्रकार का ढ़ोल होता है।

दूसरी पोंगल- इसको सूर्य पोंगल कहते हैं। यह भगवान सूर्य को समर्पित होता है। इस दिन पोंगल नामक एक विशेष प्रकार की खीर बनाई जाती है जो मिट्टी के बर्तन में नये धान से तैयार चावल मूंग दाल और गुड से बनती है। पोंगल तैयार होने के बाद सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है और उन्हें प्रसाद रूप में यह पोंगल और गन्ना अर्पण किया जाता है और फसल देने के लिए कृतज्ञता व्यक्त की जाती है।

तीसरी पोंगल- इसको मट्टू पोगल कहा जाता है। तमिल मान्यताओं के अनुसार मट्टू भगवान शंकर का बैल है जिसे एक भूल के कारण भगवान शंकर ने पृथ्वी पर रहकर मानव के लिए अन्न पैदा करने के लिए कहा और तब से वह पृथ्वी पर रहकर कृषि कार्य में मानव की सहायता कर रहा है। इस दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैं उनके सींगों में तेल लगाते हैं और अन्य प्रकार से बैलों को सजाते है। सजाने के बाद उनकी पूजा की जाती है। बैल के साथ ही इस दिन गाय और बछड़ों की भी पूजा की जाती है। कही कहीं लोग इसे केनू पोंगल के नाम से भी जानते हैं जिसमें बहनें अपने भाईयों की खुशहाली के लिए पूजा करती है और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं।

चौथी पोंगल-  चार दिनों के इस त्यौहार का अंतिम दिन कन्या पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इसे तिरूवल्लूर के नाम से भी पुकारते हैं। इस दिन घर को सजाया जाता है। इस दिन आम के पलल्व और नारियल के पत्‍तों से दरवाजे पर तोरण बनाया जाता है। महिलाएं इस दिन घर के मुख्य द्वारा पर कोलम यानी रंगोली बनाती हैं। इस दिन पोंगल लोग नये वस्त्र पहनते है और एक दूसरे के यहां पोंगल और मिठाई वायना के तौर पर भेजते हैं। इस पोंगल के दिन ही बैलों की लड़ाई भी होती है जो काफी प्रसिद्ध है। रात्रि के समय सामुदायिक भोज का आयोजन भी होता है, और एक दूसरे को मंगलमय वर्ष की शुभकामना देते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.