कान्हा की शीतलता के लिए वृंदावन में बना 'फूल बंगला'
श्रीधाम में इस मौसम में 'लड्डूगोपाल' को ठंडे वातावरण में रखने की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। बालभाव में पूजे जाने वाले 'ठाकुरजी' को आधुनिक युग में देसी-विदेशी फूलों के बीच बैठाकर गर्मी के मौसम में शीतलता का एहसास कराया जाता है। यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है।
वृंदावन, [शरद अवस्थी]। श्रीधाम में इस मौसम में 'लड्डूगोपाल' को ठंडे वातावरण में रखने की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। बालभाव में पूजे जाने वाले 'ठाकुरजी' को आधुनिक युग में देसी-विदेशी फूलों के बीच बैठाकर गर्मी के मौसम में शीतलता का एहसास कराया जाता है। यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। तुलसी, गुलाब, गेंदा, चमेली के फूलों के अलावा हरे पत्तों के साथ फूल बंगला सजाया जाता है।
वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर और सप्त देवालयों में फूल बंगला आज के समय में बहुत ही आधुनिक तरीके से बनाए जाते हैं। इसमें नमी वाले देसी फूलों के साथ विदेशी फूलों का प्रयोग किया जाता है। सप्तदेवालयों में एक गोकुलानंद मंदिर के वयोवृद्ध सेवायत पुरुषोत्तम गोस्वामी कहते हैं कि लड्डूगोपाल को गर्मी के प्रभाव से बचाने के लिए फूल बंगले सैकड़ों साल से बनते चले आ रहे हैं।
साढ़े तीन महीने सजते फूल बंगले
अप्रैल महीने की कामदा एकादशी से लेकर जुलाई महीने में हरियाली तीज तक करीब साढ़े तीन महीने तक बांके बिहारी और अन्य सभी देवालयों में फूल बंगले सजाए जाते हैं। वृंदावन के ठा. बांके बिहारी मंदिर के अलावा अन्य सभी मंदिरों में फूल बंगले प्रतिदिन शाम को सजाए जाते हैं, ताकि लड्डूगोपाल रात में आराम से सो सकें और सुबह उठें तो शीतलता भरे माहौल में। फूल बंगला बनाने पर बीस हजार से लेकर एक लाख रुपये तक खर्च आता है।
सैकड़ों साल पुरानी है परंपरा
फूल बंगला सजाने की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। संगीत सम्राट स्वामी हरिदासजी सुबह से ही फूल और पत्तों को लाकर ठाकुर को सजाते, पूजा करते और घंटों लाड़ जताते। इसी प्रकार सप्त देवालयों के षट् गोस्वामी भी किया करते, वहीं परंपरा आज भी बरकरार है।
फूलों की भरमार
बदले समय में ठाकुरजी के सजने वाले फूल बंगले में देसी फूलों के साथ विदेशी फूलों का समावेश हो गया है। औरकिट, गरबरा, कैलेस, व्हाइट रोज, नीली, बेलदॉज जैसे विदेशी फूलों अलावा देशी फूल गुलाब, गेंदा, चमेली, सूरजमुखी, कमल,चंपा, कलकतिया गेंदा, रजनीगंधा से ठाकुरजी का फूल बंगला बनाया जा रहा।
परंपरागत कारीगरों का हुनर
परंपरागत कारीगरों के अलावा दिल्ली से प्रशिक्षण प्राप्त कारीगर इस काम को अंजाम देते हैं। बिहारी मंदिर में फूल बंगला सजा रहे कारीगर राकेश बघेल, देवा प्रसाद और छोटू शर्मा ने बताया कि बंगला सजाना पुस्तैनी काम है। उसने गुरु ब्रिज से यह कला सीखी, करीब 40 कारीगर इस काम में लगे हैं। अनेक कारीगर दिल्ली से प्रशिक्षण लेकर इस काम में लगे हैं।