समय के साथ किसी का व्यक्तित्व परिवर्तित हो सकता है
किसी व्यक्ति के लिए अच्छी या बुरी, एक विशेष धारणा बना लेते उसके अनुरूप ही व्यवहार करते। समय के साथ किसी का व्यक्तित्व परिवर्तित हो सकता है।
By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 24 Mar 2017 01:22 PM (IST)Updated: Fri, 24 Mar 2017 01:28 PM (IST)
एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी काशी में विद्वानों के मध्य बैठकर भगवत्-चर्चा कर रहे थे। कौतूहलवश दो ग्रामीण वहां आ गए। वे दोनों गोस्वामीजी के ही ग्राम के थे और गंगा-स्नान करने काशी गए थे।
दोनों ने तुलसीदासजी को पहचान लिया और उनमें से एक ग्रामीण दूसरे से बोला, ‘अरे भैया, यह तुलसिया अपने संग खेला करता था। आज तिलक लगा लिया, तो इसकी काफी पूछताछ हो रही है।’ दूसरे ने भी हामी भरते हुए
कहा, ‘हां भैया, यह तो पक्का बहुरुपिया है। कैसा ढोंग कर रहा है यह!’
तुलसीदासजी ने उन्हें देखा, तो वे उनके पास चले आए। तब उनमें से एक बोला, ‘अरे तुलसिया, तूने यह क्या भेस बना रखा है? तू सबको धोखे में डाल सकता है, पर हम लोग तेरे धोखे में नहीं आएंगे।’ तुलसीदास जी उन दोनों की बात पर मन ही मन मुस्करा उठे और उनके मुंह से यह दोहा निकला : तुलसी वहां न जाइए, जन्मभूमि के
ठाम। गुण-अवगुण चीन्हें नहीं, लेत पुरानो नाम॥
उन्होंने जब दोनों को इस दोहे का अर्थ समझाया, तब कहीं जाकर उन्हें विश्वास हुआ कि ‘तुलसिया’ कोई महात्मा बन गया है। कथासार : ज्यादातर लोग किसी व्यक्ति के लिए अच्छी या बुरी, एक विशेष धारणा बना लेते हैं और उसके अनुरूप ही व्यवहार करते हैं। समय के साथ किसी का व्यक्तित्व परिवर्तित हो सकता है, इस सत्य को वे पचा नहीं पाते हैं।
Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें