जो लोग नकारात्मक प्रवृत्तियों से ग्रस्त हैं, उनकी मदद ईश्वरीय-शक्तियां भी नहीं करतीं
झूठ-फरेब की आयु ज्यादा लंबी नहीं होती, बल्कि ठग प्रवृत्ति के लोगों को कुछ समय के बाद इसके घातक परिणाम मिलने लगते हैं।
चिकनी-चुपड़ी बातों से विश्वास में लेकर किसी से कुछ हासिल कर अपनी बातों और आश्वासनों से मुकर जाना धोखा है, छल है। इस प्रवृत्ति को ठगी भी कह सकते हैं। ऐसी नकारात्मक प्रवृत्तियों की धर्मग्रंथों में कड़ी निंदा की गई है। जो लोग इन नकारात्मक प्रवृत्तियों से ग्रस्त हैं, उनकी मदद ईश्वरीय-शक्तियां भी नहीं करतीं। ऐसे लोगों को लाख पूजा-पाठ, व्रत-अनुष्ठान करने के बावजूद ईश्वर की अनुकंपा नहीं मिलती।
दुर्भाग्य है कि भौतिकता के दौर और आधुनिक शिक्षा के प्रसार के युग में तीन-तिकड़म, झूठ-फरेब और छल-कपट से कोई उपलब्धि हासिल कर लेने वाले को बुद्धिमान व चतुर इंसान माना जाता है। ऐसे व्यक्ति की निंदा के बजाय स्तुति, सामाजिक बहिष्कार की जगह स्वागत-सम्मान हो रहा है। नतीजा यह है कि इस तरह की प्रवृत्ति हर क्षेत्र में बढ़ रही है। आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते" पर तमाम लोग अमल नहीं कर रहे हैं।
झूठ-फरेब की आयु ज्यादा लंबी नहीं होती, बल्कि ठग प्रवृत्ति के लोगों को कुछ समय के बाद इसके घातक परिणाम मिलने लगते हैं। जब कोई छल के बल पर किसी को ठगता है तो उस वक्त उसका मन कुछ डरा-डरा सा हो जाता है। इस स्थिति में मानव शरीर के रसायनों में नकारात्मक और विषैले परिवर्तन होने लगते हैं, जिसका असर कुछ दिन बाद दिखता है। पौष्टिक आहार, योग और व्यायाम के बावजूद शरीर के रासायनिक परिवर्तन बीमारियों को जन्म देने लगते हैं। यह नकारात्मकता विचारों के जरिए रक्त में प्रवेश कर जाती है। फिर तो झूठ-फरेब बगैर मन उदास-सा रहने लगता है।
ऐसे में धोखेबाजी आदत बन जाती है। मनुष्य आदतों का गुलाम होता है। जब कोई पराया शख्स धोखे में नहीं फंसता, तो फिर अपने परिवार, रिश्तेदार और आसपास रहने वालों पर वह कपट का जाल फेंकने लगता है। नजदीकी लोग तो सब कुछ जानते रहते हैं। लिहाजा विवाद और झगड़े शुरू होते हैं। गैरों को धोखा देकर बड़ा और रसूखदार बना व्यक्ति अपनों से मात खा जाता है। फिर मन में जो ग्लानि होती है, वह इतना कष्ट देती है कि जीवन भारी लगने लगता है। कष्ट की छोटी-सी अवधि भी बहुत लंबी दिखती है।