आध्यात्मिकता और उल्लास का संगम
एक माह तक चलने वाले इस धार्मिक मेले मे देश-विदेश से करोड़ो लोग स्नान, दान जप, तप, भजन, प्रवचन के लिए यहा आते है।
माघ मास पर विशेष..
भारतीय दर्शन मे आध्यात्मिक दृष्टि से माघ मास का विशेष महत्व है। इसे आलोक मास भी कहा गया गया। सूर्योपासना के इस विशिष्ट माह की महिमा गोस्वामी तुलसीदास जी के इन शब्दो मे स्वत: स्पष्ट हो जाती है:
माघ मकर गत रवि जब होई,
तीरथ-पतिहि आव सब कोई।
इस माह मे पड़ने वाले हर पर्व के रूप-रग निराले व अनोखे है। इसमे आध्यात्मिकता के साथ भरपूर उल्लास भी है और लोकतत्वो की जीवतता भी। प्रकृति के प्रति आदरभाव और सकारात्मकता है, तो लोकरजन की गहन भावना भी। इसमे दान देने की उदालाता समाहित है। स्नान-दान का यह काल विशेष मानव समाज को अपने अतर मे सयम व त्याग के दिव्य भाव जगाने की शुभ प्रेरणा देता है। ऋ तु चक्र के परिवर्तन का यह पर्व तब मनाया जाता है, जब खेतो मे फसल कट चुकी होती है और किसान अच्छी पैदावार के लिए प्रकृति को धन्यवाद देते है। हमारा अन्नदाता खुद को प्रकृति से अलग नही, बल्कि उसको अपना सबसे प्रिय और आराध्य मानता है। इस स्नान पर्व के प्रसाद मे भी यह विशिष्टता दिखती है। तिल, गुड़ और उड़द की दाल जैसे उष्ण प्रवृला के भोच्य पदार्थो के सेवन का विधान। यही वजह है कि देश के विभिन्न प्रातो मे अद्भुत परपराओ और रीति-रिवाजो के साथ एक माह का यह स्नान पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
इस स्नान पर्व का शुभारंभ मकर सक्रांति से होता है। इस दिन सूर्य नारायण अपनी दिशा बदलकर धनु राशि से मकर राशि मे सक्रमण कर हमारे अधिक निकट आ जाते है। उनकी यह समीपता हमारे जीवन मे नवजीवन भरती है। सूर्य की ऊर्जा अधिक मात्रा मे मिलने से जीव-जगत मे सक्रियता बढ़ जाती है। माघ के महीने मे सूर्य का महत्व इसलिए बढ़ जाता है, क्योकि वह अपनी गति उलारायण की ओर करके हमे यह सकेत देते है कि अब अधकार को छोड़ प्रकाश की ओर बढ़ने का समय आ गया है। इसी कारण साधना विज्ञान के मर्मज्ञो ने माघ मास को सबसे अधिक महत्व दिया है। वैदिक साहित्य मे उल्लेख है कि हमारे ऋ षि-मनीषी इस महीने मे विभिन्न उच्चस्तरीय आध्यात्मिक साधनाए करते थे।
यह परंपरा रामायण एव महाभारत काल मे भी प्रचलित थी। रामायण काल मे तीर्थराज प्रयाग मे महर्षि भारद्वाज का आश्रम एव साधना आरण्यक था, जहा समूचे आर्यावर्त के जिज्ञासु साधक एकत्रित हो सगमतट पर एक मास का कल्पवास करते थे। माघ मास मे प्रयाग की पुण्यभूमि मे होने वाले आध्यात्मिक समागम मे बड़ी सख्या मे लोग कल्पवास के लिए जुटते है। कुभ पर्व पर तो इसकी रौनक देखते ही बनती है। इस स्नान पर्व की उल्लेख चीनी इतिहासकार ह्वेनसाग ने अपने भारत के यात्रा वृलाात मे भी किया है। हमारे पहले प्रधानमत्री प. जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी कृति 'भारत एक खोज' मे माघ मेले का
अद्भुत चित्रण किया है। एक माह तक चलने वाले इस धार्मिक मेले मे देश-विदेश से करोड़ो लोग स्नान, दान जप, तप, भजन, प्रवचन के लिए यहा आते है। प्रयाग, उलारकाशी, हरिद्वार, उच्जैन, नासिक, अयोध्या व नैमिषारण्य जैसे देश के प्रमुख तीर्थस्थलो मे इस स्नान पर्व पर बड़ी सख्या मे श्रद्धालु जुटते है।
वैसे तो इस महीने की प्रत्येक तिथि पवित्र मानी गई है, लेकिन प्रमुख पर्व है-मकर सक्राति, सकष्टी चतुर्थी, अचला सप्तमी, माघी पूर्णिमा षट्तिला एकादशी, मौनी अमावस्या, वसत पचमी और जया एकादशी।
माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि भीष्माष्टमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस तिथि को भीष्म पितामह ने सूर्य के उलारायण होने पर अपने नश्र्वर शरीर का त्याग किया था। उन्ही की पावन स्मृति मे यह पर्व मनाया जाता है।
षट्तिला एकादशी के दिन छह प्रकार से तिल के सेवन का विधान है। इस दिन तिल के जल से Fान, तिल का उबटन, तिल से हवन, तिल मिले जल का पान,तिल का भोजन तथा तिल का दान किया जाता है।
मौनी अमावस्या माघ मास का प्रमुख पर्व है, जो कृष्णपक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। आत्मसयम की साधना की दृष्टि से इस पावन पर्व का विशेष महत्व है। इसी प्रकार माघ मास की शुक्ल पचमी को वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि देवी सरस्वती का इस दिन आविर्भाव हुआ था। इसीलिए इसे वागीश्र्वरी जयती एव श्रीपचमी कही गयी है।
माघ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते है। मान्यता है कि इसका व्रत करने से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पूनम नेगी