नाजनीन रामजी की छठी मनाएंगी और सोहर भी गाएंगी
देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी, जहां 33 कोटि देवताओं का वास लेकिन इनमें दो बेहद खास। भक्त-भगवान, आत्मा-परमात्मा, जीव-ब्रह्म की परिधि से परे। आपस में कहीं सख्य भाव तो कहीं मातृत्व-पितृत्व सा जुड़ाव लिए खड़े। यह हैं घर-घर में विराजमान प्रभु श्रीराम व मुरलीधर श्रीकृष्ण भगवान।
वाराणसी। देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी, जहां 33 कोटि देवताओं का वास लेकिन इनमें दो बेहद खास। भक्त-भगवान, आत्मा-परमात्मा, जीव-ब्रह्म की परिधि से परे। आपस में कहीं सख्य भाव तो कहीं मातृत्व-पितृत्व सा जुड़ाव लिए खड़े। यह हैं घर-घर में विराजमान प्रभु श्रीराम व मुरलीधर श्रीकृष्ण भगवान।
इनके पूजन अर्चन में शास्त्रीय अनुष्ठानों के मर्यादा बंध का कोई द्वंद्व नहीं। इसमें मंत्र-यंत्र-तंत्र नहीं बल्कि प्राधान्य हैं आत्मीय भाव, नेह-स्नेह की वर्षा का जो दिलों को भिगो जाती है। इनके जन्मोत्सव पर गौर करें, जिसे काशी अपने पुत्र के उत्सव सा मनाती है। कई ऐसे भक्त जो घर आए मेहमान सा छठी-बरही की रस्में निभाते हैं। पगता है सोंठउरा, सोहर भी गाई जाती है। आयोजन के बहाने तपते हृदय को शीतल छांव मिल जाती है। अब नाजनीन को ही लें, मजहब अपनी जगह और यह दिल अपनी जगह। दुनिया भर के प्रपंचों से खुद को बेखबर रखते हुए वे आठ वर्षो से राम जन्मोत्सव मना रही हैं। अभी चैत्र नवमी को ही अपनी सहेलियों संग मर्यादा पुरुषोत्तम की आरती उतारी और स्वरचित प्रार्थना आराधना की। कबीर के निगरुण राम तो तुलसी के सगुण साकार रूप को धूप बत्ती दिखाया। मन ने गुनगुनाया तो उत्सवी सिलसिले को आगे बढ़ाने का प्लान बनाया। इस क्रम में ही छठ और बरही मनाने का खाका भी खींच दिया। वास्तव में नाजनीन के लिए राम इमामे हिंदू और.. करीम भी हैं। इन भावों को उन्होंने अपनी प्रार्थना और आरती में सजाया है। उनका मानना है कि राम कोई मूर्ति नहीं, भाव हैं जो अंतस के खालीपन में अपनी उपस्थिति से आनंद रंग भरते हैं। निराशा के घनघोर अंधकार में सहज ही संबल प्रदान करते हैं। उनके लिए भाव प्रधान हैं जो मजहबी बंटवारों से अनजान हैं।
लोकाचार व भक्त का विचार ही अंगीकार- लोकाचार व भक्त का विचार ही इसमें अंगीकार है जो उन्हें चाहे जिस रूप रंग में ढाल लेता है। वर्ष 2006 में संकट मोचन मंदिर में हुए बम विस्फोट से नाजनीन के मन में यह भाव जगे। बेबाक कहती हैं-झगड़ा केवल धर्म प्रतीकों का है, एक दूसरे के प्रतीकों के प्रति आदर सम्मान भाव जग जाए तो ऐसी स्थिति ही न आए। इसके प्रसार व विस्तार के लिए उन्होंने 2007 में पहली बार प्रभु श्रीराम का जन्मोत्सव और दीपावली पर वन आगमन उत्सव मनाया। इसमें तब तीन चार सहेलियां हुआ करती थीं लेकिन अब यह संख्या 50 के पार हो चुकी है। इनमें नजमा परवीन, कहकशां अंजुम, शबाना बानो, बिल्किश बेगम, सीमा बानो, हाजरा बेगम खासी सक्रिय हैं। पहले परंपरागत आरती-प्रार्थना गुनगुनाने वाला यह समूह वर्ष 2012 से नाजनीन रचित आराधना के शब्द दोहराता है। विशाल भारत संस्थान से जुड़ी समाजसेवी युवती 2007 में अनूठे अनुष्ठान और हनुमान चालीसा के उर्दू अनुवाद से चर्चा में आई थी। फिलहाल रामचरित मानस को भी उर्दू में संजों रही हैं।