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दो महीने का कुंभ और कई साल की जहमत

नाशिक में लगने जा रहा कुंभ स्थानीय किसानों एवं धार्मिक मठों के लिए मुसीबत भी बनकर आ रहा है। कुंभ के लिए अधिगृहीत भूमि का उचित मुआवजा पाना किसानों और मठों के लिए टेढ़ी खीर साबित होती है। नाशिक और उसके पड़ोसी कस्बे त्रयंबकेश्वर में सिंहस्थ कुंभ की शुरुआत 14 जुलाई

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2015 08:52 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2015 08:59 PM (IST)
दो महीने का कुंभ और कई साल की जहमत

मुंबई, [ओमप्रकाश तिवारी]। नाशिक में लगने जा रहा कुंभ स्थानीय किसानों एवं धार्मिक मठों के लिए मुसीबत भी बनकर आ रहा है। कुंभ के लिए अधिगृहीत भूमि का उचित मुआवजा पाना किसानों और मठों के लिए टेढ़ी खीर साबित होती है।

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नाशिक और उसके पड़ोसी कस्बे त्रयंबकेश्वर में सिंहस्थ कुंभ की शुरुआत 14 जुलाई से होने जा रही है। कुंभ करीब ढाई माह तक चलेगा। नाशिक महानगरपालिका ने कुंभ में आनेवाले अखाड़ों को ठहराने के लिए स्थानीय किसानों एवं धार्मिक मठों से करीब 350 एकड़ जमीन अस्थाई तौर पर अधिगृहीत की है। एक साल के लिए अधिगृहीत शहर के बीचोंबीच स्थित इन भूखंडों का मुआवजा 10.57 लाख रुपये निर्धारित किया गया है। लेकिन यह मुआवजा समय पर मिलना मुश्किल होता है। इसके अलावा मुआवजे से अधिक राशि भूखंड को पुन: कृषियोग्य बनाने में खर्च करना पड़ता है, क्योंकि इस जमीन पर साधुग्राम बसाने करने के लिए प्रशासन करीब नौ इंच मोटी बजड़ी की फर्श तैयार करती है। कुंभ के बाद यह परत ज्यों-की-त्यों छोड़कर प्रशासन नदारद हो जाता है। तब किसानों को मुआवजे से अधिक राशि अपने खेतों को पुन: तैयार करने में खर्च हो जाती है।

इससे भी अधिक मुसीबत स्थानीय धार्मिक मठों के सामने खड़ी दिख रही है। कुंभ के नाम पर स्थायी या अस्थाई रूप से अधिगृहीत भूखंडों के लिए इन ट्रस्टों को मुकदमा तक लडऩा पड़ रहा है। साथ ही उनकी बची-खुची जमीनों को प्रशासन अन्य उद्देश्यों के लिए आरक्षित करने लगा है। अयोध्या की छोटी मणिराम दास छावनी की ही एक शाखा श्री स्वामीनारायण मंदिर ट्रस्ट से 30 एकड़ जमीन नाशिक मनपा ने 2003 में प्रति एकड़ 20 लाख रुपये की दर से खरीदी। मंदिर के महंत रामसनेही दास के अनुसार जमीन की आधी-तिहाई राशि मिलने के बाद शेष के लिए ट्रस्ट को मनपा से मुकदमेबाजी करनी पड़ रही है। यही नहीं, करीब 300 साल पुराने इस ट्रस्ट की बची-खुची जमीन भी मनपा स्टेडियम और अस्पताल के नाम पर जबरन आरक्षित करती जा रही है। जबकि 2003 के कुंभ हेतु आरक्षित कई भूखंडों पर आज व्यावसायिक और रिहायसी इमारतें देखी जा सकती हैं।


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