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नंदा की विदाई देख 'पिघला' आसमान

पहाड़ों के पीछे डूबते सूरज की स्वर्णिम आभा से चमकता आकाश और नीचे वादी में फैली मखमली घास की ढलान। मानो प्रकृति ही नंदा का सत्कार कर रही हो। नंदा के स्वागत में पलक-पांवड़े बिछाए ग्रामीणों के दृश्य अब पीछे छूट चुके हैं। दिनभर रही रिमझिम बारिश के बाद मौसम साफ हुआ। शाम

By Edited By: Published: Sun, 31 Aug 2014 03:16 PM (IST)Updated: Sun, 31 Aug 2014 03:18 PM (IST)
नंदा की विदाई देख 'पिघला' आसमान

गैरोली पातल [चमोली], जागरण संवाददाता। पहाड़ों के पीछे डूबते सूरज की स्वर्णिम आभा से चमकता आकाश और नीचे वादी में फैली मखमली घास की ढलान। मानो प्रकृति ही नंदा का सत्कार कर रही हो। नंदा के स्वागत में पलक-पांवड़े बिछाए ग्रामीणों के दृश्य अब पीछे छूट चुके हैं। दिनभर रही रिमझिम बारिश के बाद मौसम साफ हुआ। शाम को सूर्यदेव के दर्शन हुए और चमोली के अंतिम गांव वाण से नंदा के धर्मभाई लाटू की अगुआई में चली राजजात ने शाम लगभग छह बजे समुद्र तल से 8929 फीट की ऊंचाई पर स्थित गैरोली पातल में पड़ाव डाला।

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उल्लास की यात्रा अब रोमांच में बदल रहस्य पथ पर बढ़ रही है। शनिवार सुबह ब्रह्मा मुहूर्त से ही पूजा-अर्चना के दौर शुरू हुए और नंदा के धर्मभाई लाटू देवता को यात्रा की अगुआई के लिए आमंत्रित किया गया। माना जाता है कि वाण लाटू देवता का गांव है और वह प्रत्येक बारह साल में बहन को कैलास भेजने के लिए ही अपने मंदिर से बाहर आते हैं। पूर्वाह्न 10.30 बजे शंख ध्वनि रणसिंघा और भंकारे की धुन और नंदा के जयकारों के साथ यात्रा दस किलोमीटर दूर अगले पड़ाव गैरोली पातल के लिए रवाना हुई। राजजात में कुरुड़ की राजराजेश्वरी, दशोली की दशमद्वार और लाता की डोलियों समेत छह डोलियां शामिल हैं। इसके अलावा राजछंतोली के साथ चार सौ से ज्यादा छंतोलियां यात्रा की शोभा बढ़ा रही हैं।

तकरीबन सात से आठ हजार श्रद्धालुओं का हुजूम बांज और बुरांश के जंगलों के बीच तीन किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ रणकधार नामक स्थान पर पहुंचा। लोक मान्यता है कि यहां देवी ने रक्तबीज नामक दैत्य का संहार किया था। इसके बाद तकरीबन डेढ़ किलोमीटर नीचे उतर राजजात नीलगंगा के तट पहुंची। परंपरा के अनुसार लाटू देवता ने नंदा को नदी पार कराई। मान्यता है कि नंदा की कैलास यात्रा के दौरान नील उफान पर थी, ऐसे में उन्होंने अपने भाई लाटू का स्मरण किया। तब जाकर नंदा नदी पार पाई। इस पर बहन ने भाई को भेंट स्वरूप सवा सात मीटर लंबा वस्त्र दिया। नील गंगा को पार करने के बाद इस परंपरा का भी पालन किया गया।

यहां से आगे का रास्ता श्रद्धालुओं की परीक्षा लेने वाला साबित हुआ। जंगल के बीच संकरी पगडंडी पर पांच किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई। बांज और बुरांश के वृक्षों की छांव में ठंडी हवा के सहारे सफर पूरा हुआ तो यात्री बुरी तरह से हांफ रहे थे। हालांकि गैरोली पातल का दृश्य देख थकान काफूर हो गई। पहाड़ियों से घिरी मखमली घास की ढलान राजजात का पड़ाव है। रविवार को यात्रा तीन किलोमीटर दूर वेदनी बुग्याल पहुंचेगी।

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