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नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:

यह प्रार्थना लेकर देवता हिमालय पर्वत पर गए और वहां जाकर विष्णुमाया नामक दुर्गा की स्तुति करने लगे।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 01 Apr 2017 03:49 PM (IST)Updated: Sat, 01 Apr 2017 03:58 PM (IST)
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:

 मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं।  दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूज की जाती है। यह दुर्गा देवताओं के और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं। महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या के रूप में पालन-पोषण किया और साक्षात दुर्गा स्वरूप इस छठी देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया। यह दानवों और असुरों तथा पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी भी कहलाती है। 

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महिषासुर के बाद शुम्भ और निशुम्भ नामक असुरों ने अपने असुरी बल के घमंड में आकर इंद्र के तीनों लोकों का राज्य और धनकोष छीन लिया। शुम्भ और निशुम्भ नामक राक्षस ही नवग्रहों को बंधक बनाकर इनके अधिकार का उपयोग करने लगे। वायु और अग्नि का कार्य भी वही करने लगे। उन दोनों ने सभी देवताओं को अपमानित कर राज्य भ्रष्ट घोषित कर पराजित तथा अधिकारहीन बनाकर स्वर्ग से निकाल दिया।

उन दोनों महान असुरों से तिरस्कृत देवताओं ने अपराजिता देवी का स्मरण किया कि हे जगदम्बा, आपने हम लोगों को वरदान दिया था कि आपत्ति काल में आपको स्मरण करने पर आप हमारे सभी कष्टों का तत्काल नाश कर देंगी। यह प्रार्थना लेकर देवता हिमालय पर्वत पर गए और वहां जाकर विष्णुमाया नामक दुर्गा की स्तुति करने लगे।

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।

नम: प्रकृत्यै भदायै नियता: प्रणता: स्मताम्।।

रौदायै नमो नित्यायै गौयैर् धात्रयै नमो नम:।

ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमो नम:।।

कल्याण्यै प्रणतां वृद्धयै सिद्धयै कुमोर् नमो नम:।

नैऋर्त्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नम:।।

दुर्गार्य दुर्गपारार्य सारार्य सर्वकारिण्यै।

ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रार्य सततं नम:।।

अतिसौम्यातिरौदार्य नतास्तस्यै नमो नम:।

नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नम:।।

या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।

या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्याभिधीयते।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।

या देवी सर्वभूतेषु निदारूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।

या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।

या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता :।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।

देवी कात्यायनी का तंत्र में अति महत्व है |विवाह बाधा निवारण में इनकी साधना चमत्कारिक लाभदायक सिद्ध होती है |जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब हो रहा हो ,अथवा विवाह बाधा आ रही हो ,ग्रह बाधा हो ,उन्हें कात्यानी यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर ,उस पर निश्चित दिनों तक निश्चित संख्या में कात्यानी देवी के मंत्र का जप अति लाभदायक होता है और विवाह बाधा का निराकरण हो शीघ्र विवाह का मार्ग प्रशस्त होता है | जो खुद न कर सके वे अच्छे कर्मकांडी से इसका अनुष्ठान करवाकर लाभ उठा सकते हैं.


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