मां दुर्गा ने यहां कि शुभ-निशुंभ का संहार
आलम यह है कि मां कनक दुर्गा का यह मंदिर इतना प्रसिद्ध है कि सदियों से विजयवाड़ा की यह पहचान रहा है।
आंध्रप्रदेश के विजयवाड़ा शहर में स्थित है 'कनक दुर्गा मंदिर'। यह मंदिर यहां इंद्रकीलाद्री पहाड़ी पर बनाया गया यह मदिर बहुत प्राचीन है, यह पहाड़ी कृष्णा नदी के किनारे पर है। दुर्गा सप्तसती, कालिका पुराण और अन्य वैदिक धर्म ग्रंथों में देवी कनक का वर्णन मिलता है।
धर्मग्रंथों के अनुसार इस स्थान पर भगवान शिव की कठोर तपस्या के बाद ही अर्जुन को पाशुपतास्त्र की प्राप्ति हुई थी। तब यह मंदिर अर्जुन ने मां दुर्गा के सम्मान में बनवाया था। मंदिर में स्थापित कनक दुर्गा मां की प्रतिमा स्वयंभू है।
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार कि एक बार जब दैत्यों ने पृथ्वी पर रहने वाले लोगों को बहुत सताया। जब अत्याचार बड़ गया। तब मां ने अलग-अलग रूप धारण किए। उन्होंने शुंभ और निशुंभ को मारने के लिए कौशिकी, महिषासुर के वध के लिए महिषासुर मर्दिनी व दुर्गमसुर के लिए दुर्गा जैसे रूप धारण कर उनका संहार किया।
कनक दुर्गा ने अपने एक श्रद्धालु कीलाणु को पर्वत बनकर स्थापित होने का आदेश दिया, जिस पर वह निवास कर सकें। तत्पश्चात कीलाद्री की स्थापना दुर्गा मां के निवास स्थान के रूप में हो गई। महिषासुर का वध करते हुए इंद्रकीलाद्री पर्वत पर मां आठ हाथों में अस्त्र थामे और शेर पर सवार हुए स्थापित हुईं।
आलम यह है कि मां कनक दुर्गा का यह मंदिर इतना प्रसिद्ध है कि सदियों से विजयवाड़ा की यह पहचान रहा है। यहां नवरात्रि में सरस्वती पूजा का भी विधान है। यहां दशहरा उत्सव हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर कई भक्त यहां आते हैं कृष्ण नदी में आस्था की डुबकी लगाकर, वह मां कनक दुर्गा जी के दर्शन करते हैं और मानसिक शांति को प्राप्त करते हैं>