18 जून 2017 से प्रारंभ हो रहे हैं 'मूल' क्या है इसका अर्थ
मूल नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में आते हैं। यह ये यो भा भी के नाम से जाना जाता है। केतु गुरु धनु राशि में उच्च का होता है व इसकी दशा 7 वर्ष की होती है।
मूल नहीं होते हैं अशुभ
ज्योतिषशास्त्र में गण्डमूल नक्षत्र के अंतर्गत अश्विनी, रेवती, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र को रखा गया है। अगर बच्चे का जन्म गण्डमूल नक्षत्र में हो तो एक महीने के अंदर जब भी वह नक्षत्र लौटकर आए तो उस दिन गण्डमूल नक्षत्र की शांति करा लेनी चाहिए। अन्यथा इसका अशुभ परिणाम प्राप्त होता है। शतपथ ब्राह्मण और तैत्तिरीय ब्राह्मण नामक ग्रंथ में बताया गया है कुछ स्थितियों में यह दोष अपने आप समाप्त हो जाता है। इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले व्यक्ति खुद के लिए भाग्यशाली होता है। व्यक्ति का जन्म अगर वृष, सिंह, वृश्चिक अथवा कुंभ लग्न में हो तब मूल नक्षत्र में जन्म होने पर भी इसका अशुभ फल प्राप्त नहीं होता है।
इस मूल में जन्म लेने वाला बच्चा होता है भाग्यशाली
गण्डमूल नक्षत्र में जन्म लेने पर भी अगर लड़के का जन्म रात में और लड़की का जन्म दिन में हो तब मूल नक्षत्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है। गण्डमूल नक्षत्र मघा के चौथे चरण में जन्म लेने वाला बच्चा धनवान और भाग्यशाली होता है। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। बच्चे का जन्म अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में, रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में, अश्लेषा के चौथे चरण में, मघा एवं मूल के पहले चरण में एवं ज्येष्ठा के चौथे चरण में हुआ है तब मूल नक्षत्र हानिकारक होता है। बच्चे का जन्म अगर मंगलवार अथवा शनिवार के दिन हुआ है तो इसके अशुभ प्रभाव और बढ़ जाते हैं।
ये होते हैं गण्डमूल नक्षत्र
27 नक्षत्रों में अश्विनी, रेवती, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र को गण्डमूल नक्षत्र कहा गया है। इनमें 3 नक्षत्र केतु के तो बाकी तीन बुध के नक्षत्र हैं। केतु के अश्विनी, मघा व मूल नक्षत्र हैं तो बुध के आश्लेषा, ज्येष्ठा व रेवती नक्षत्र गण्डमूल कहे जाते हैं। गण्डमूल नक्षत्रों में एक नक्षत्र की समाप्ति पर दूसरे नक्षत्र के आरंभ होने के साथ ही एक राशि का अंत होकर दूसरी राशि का आरंभ भी साथ ही होता है। शास्त्रानुसार गण्डमूल नक्षत्र में जन्मा बालक स्वयं के लिए अथवा माता-पिता अथवा अपने बहन-भाईयों के लिए अशुभ रहता है और कभी व्यवसाय अथवा जीवन में उन्नति आदि के संबंध में भी अशुभ रह सकता है।
मूल नहीं होते हैं अशुभ
ज्योतिषशास्त्र में गण्डमूल नक्षत्र के अंतर्गत अश्विनी, रेवती, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र को रखा गया है। अगर बच्चे का जन्म गण्डमूल नक्षत्र में हो तो एक महीने के अंदर जब भी वह नक्षत्र लौटकर आए तो उस दिन गण्डमूल नक्षत्र की शांति करा लेनी चाहिए। अन्यथा इसका अशुभ परिणाम प्राप्त होता है। शतपथ ब्राह्मण और तैत्तिरीय ब्राह्मण नामक ग्रंथ में बताया गया है कुछ स्थितियों में यह दोष अपने आप समाप्त हो जाता है। इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले व्यक्ति खुद के लिए भाग्यशाली होता है। व्यक्ति का जन्म अगर वृष, सिंह, वृश्चिक अथवा कुंभ लग्न में हो तब मूल नक्षत्र में जन्म होने पर भी इसका अशुभ फल प्राप्त नहीं होता है।
इस मूल में जन्म लेने वाला बच्चा होता है भाग्यशाली
गण्डमूल नक्षत्र में जन्म लेने पर भी अगर लड़के का जन्म रात में और लड़की का जन्म दिन में हो तब मूल नक्षत्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है। गण्डमूल नक्षत्र मघा के चौथे चरण में जन्म लेने वाला बच्चा धनवान और भाग्यशाली होता है। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। बच्चे का जन्म अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में, रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में, अश्लेषा के चौथे चरण में, मघा एवं मूल के पहले चरण में एवं ज्येष्ठा के चौथे चरण में हुआ है तब मूल नक्षत्र हानिकारक होता है। बच्चे का जन्म अगर मंगलवार अथवा शनिवार के दिन हुआ है तो इसके अशुभ प्रभाव और बढ़ जाते हैं।
ये होते हैं गण्डमूल नक्षत्र
27 नक्षत्रों में अश्विनी, रेवती, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र को गण्डमूल नक्षत्र कहा गया है। इनमें 3 नक्षत्र केतु के तो बाकी तीन बुध के नक्षत्र हैं। केतु के अश्विनी, मघा व मूल नक्षत्र हैं तो बुध के आश्लेषा, ज्येष्ठा व रेवती नक्षत्र गण्डमूल कहे जाते हैं। गण्डमूल नक्षत्रों में एक नक्षत्र की समाप्ति पर दूसरे नक्षत्र के आरंभ होने के साथ ही एक राशि का अंत होकर दूसरी राशि का आरंभ भी साथ ही होता है। शास्त्रानुसार गण्डमूल नक्षत्र में जन्मा बालक स्वयं के लिए अथवा माता-पिता अथवा अपने बहन-भाईयों के लिए अशुभ रहता है और कभी व्यवसाय अथवा जीवन में उन्नति आदि के संबंध में भी अशुभ रह सकता है।
ऐसे होते हैं मूल शांत
यदि किसी बच्चे का जन्म गण्डमूल नक्षत्र में हुआ है तब ठीक 27वें दिन उसी नक्षत्र के आने पर मूल शांति अवश्य करा लेनी चाहिए। यदि किसी कारण वश 27 दिन बाद मूल शांति नहीं करवा सकते तब जिस दिन भी जन्म का मूल नक्षत्र पड़े उसी दिन शांति करा लेनी चाहिए अथवा बालक के जन्म दिन के पास जब यह नक्षत्र आए तब भी मूल शांति करा सकते हैं। यह मूल शांति किसी विद्वान तथा योग्य ब्राह्मण द्वारा ही करवानी चाहिए जिसे मूल शांति कराने का पूर्ण ज्ञान हो।
18 जून | रेवती | 18:29 | 20 जून | अश्विनी | 15:43 |
26 जून | आश्लेषा | 21:23 | 28 जून | मघा | 19:17 |
6 जुलाई | ज्येष्ठा | 8:24 | 8 जुलाई | मूल | 14:10 |
15 जुलाई | रेवती | 24:48:00 | 17 जुलाई | अश्विनी | 23:18 |
24 जुलाई | आश्लेषा | 7:43 | 26 जुलाई | मघा | 4:52 |
2 अगस्त | ज्येष्ठा | 15:16 | 4 अगस्त | मूल | 21:02 |
12 अगस्त | रेवती | 6:14 | 14 अगस्त | अश्विनी | 5:04 |
20 अगस्त | आश्लेषा | 17:22 | 22 अगस्त | मघा | 14:43 |
29 अगस्त | ज्येष्ठा | 22:57 | 1 सितंबर | मूल | 4:47 |
8 सितंबर | रेवती | 12:31 | 10 सितंबर | अश्विनी | 10:37 |
16 सितबर | आश्लेषा | 25:05:00 | 18 सितंबर | मघा | 23:23 |
26 सितंबर | ज्येष्ठा | 7:03 | 28 सितंबर | मूल | 12:57 |
5 अक्तूबर | रेवती | 20:50 | 7 अक्तूबर | अश्विनी | 17:51 |
14 अक्तूबर | आश्लेषा | 6:54 | 16 अक्तूबर | मघा | 6:07 |
23 अक्तूबर | ज्येष्ठा | 14:53 | 25 अक्तूबर | मूल | 20:48 |
2 नवंबर | रेवती | 6:56 | 4 नवंबर | अश्विनी | 3:29 |
10 नवंबर | आश्लेषा | 12:25 | 12 नवंबर | मघा | 11:32 |
19 नवंबर | ज्येष्ठा | 21:57 | 22 नवंबर | मूल | 3:51 |
29 नवंबर | रेवती | 17:12 | 1 दिसंबर | अश्विनी | 14:28 |
7 दिसंबर | आश्लेषा | 19:54 | 9 दिसंबर | मघा | 17:41 |
17 दिसंबर | ज्येष्ठा | 4:13 | 19 दिसंबर | मूल | 10:09 |
26 दिसंबर | रेवती | 25:47:00 | 28 दिसंबर | अश्विनी | 24:38:00 |