मनुष्य को ठीक से देखे, सुने और समझे बिना कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए
पाटलिपुत्र में मणिभद्र नाम का एक सेठ रहता था। समय एक सा नहीं रहा इसलिए वह कुछ दिनों बाद निर्धन हो गया। एक दिन जब वह सोया हुआ था तब पूर्वजों का संचित धन उसके सपने में आया।
पाटलिपुत्र में मणिभद्र नाम का एक सेठ रहता था। समय एक सा नहीं रहा इसलिए वह कुछ दिनों बाद निर्धन हो गया। एक दिन जब वह सोया हुआ था तब पूर्वजों का संचित धन उसके सपने में आया।
धन एक साधु के वेश में आया तो उसने मणिभद्र से कहा, 'मैं तुम्हारे पास इसी वेश में सुबह आऊंगा। तुम मेरे सिर पर डंडे से प्रहार करना। मैं सोने का ढेर बन कर वहीं गिर पढ़ूंगा।'
सुबह-सुबह जैसे ही मणिभद्र स्नान कर बहार निकला, तभी स्वप्न वाला साधु प्रकट हुआ। मणिभद्र ने उसके सिर पर डंडे बरसा दिए। वह सोने का ढेर बन गया मणिभद्र ने वह सोना रख लिया और वह फिर से धनवान बन गया।
इस पूरे घटनाक्रम को पास ही खड़े एक व्यक्ति ने देख लिया। उसने सोचा ऐसा कुछ कर वह भी धनवान बन सकता है। वह तुरंत एक मंदिर पहुंचा उसने वहां एक साधु को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया। जब वह साधु उस व्यक्ति के घर आया तो उसने उस साधु के सिर पर डंडे बरसाना शुरू कर दिया। ऐसे में वो साधु घायल हो गया।
चीखने-रोने की आवाज सुनकर आस-पास घूम रहे राजा के सिपाहियों ने पकड़ लिया और उसे न्यायालय में पेश किया। न्यायाधीश ने उस व्यक्ति को कठोर दंड सुनाते हुए कहा, 'किसी भी मनुष्य को ठीक से देखे, सुने और समझे बिना कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए।'
संक्षेप में
जब कोई व्यक्ति किसी को तेजी से सफलता प्राप्त करते देखता है तब उसमें उस जैसा बनने की मनोकामना होती है। यह स्वाभाविक है। किसी को देख कर करना नकल करना है। नकल विवेकहीन भी हो सकती है। ऐसी विवेकहीन नकल विनाश को आमंत्रित करती है।