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महाअष्टमी व नवमी का व्रत-दर्शन दो को

शारदीय नवरात्र में इस बार अष्टमी और नवमी एक ही दिन अर्थात दो अक्टूबर गुरुवार को पड़ रही है। इसी दिन भगवती के आठवें व नौंवें स्वरूप का दर्शन-पूजन किया जाएगा। इसी दिन दोनों व्रत भी रखे जाएंगे और दोनों ही व्रत का पारन अगले दिन अलग-अलग समय पर होगा। काशी विश्वनाथ मंदिर के आचार्य पद्मश्री प्रो. देवीप्रसाद द्विवेदी ने बताया कि अष्टमी

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 01 Oct 2014 09:36 AM (IST)Updated: Wed, 01 Oct 2014 01:48 PM (IST)
महाअष्टमी व नवमी का व्रत-दर्शन दो को

वाराणसी। शारदीय नवरात्र में इस बार अष्टमी और नवमी एक ही दिन अर्थात दो अक्टूबर गुरुवार को पड़ रही है। इसी दिन भगवती के आठवें व नौंवें स्वरूप का दर्शन-पूजन किया जाएगा। इसी दिन दोनों व्रत भी रखे जाएंगे और दोनों ही व्रत का पारन अगले दिन अलग-अलग समय पर होगा।

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काशी विश्वनाथ मंदिर के आचार्य पद्मश्री प्रो. देवीप्रसाद द्विवेदी ने बताया कि अष्टमी दो अक्टूबर को सुबह 8.30 बजे तक है, इसके बाद नवमी लग जा रही है जो तीन अक्टूबर की सुबह 6.24 बजे तक ही है। ऐसे में महासंधि पूजा भी दो अक्टूबर की संधि बेला में ही की जाएगी। तीन अक्टूबर को सूर्योदय 6.07 बजे हो रहा है। महाअष्टमी व्रत का पारन इसी दिन प्रात: 6.24 बजे से पहले किया जाएगा। होम और कन्या पूजन इत्यादि भी इससे पहले ही कर लिया जाएगा। नवमी का पारन दशमी तिथि अर्थात तीन अक्टूबर को ही सुबह 6.24 के बाद किया जाएगा। इस दिन ही विजयदशमी होगी। देवी प्रतिमाओं का विसर्जन भी किया जा सकता है।

महागौरीति चाष्टमम

शारदीय नवरात्र में नवदुर्गा के आठवें स्वरूप में भगवती महागौरी के दर्शन-पूजन का विधान है। भगवती का सौम्य, सुंदर, मोहक रूप महागौरी में है। महागौरी की मान्यता भगवती अन्नपूर्णा को है। इनका मंदिर विश्वनाथ गली में स्थित है।

देवी, सिंह की पीठ पर विराजमान हैं, जिनके मस्तक पर चंद्रमा का मुकुट है जो मरकतमणि के समान कांतिवारी अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण किए रहती हैं। इनकी आराधना का मंत्र है-'ऊॅं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाय विच्चै' है।

महागौरी का ध्यान कर इस मंत्र के जप से संकटों से मुक्ति मिलती है। पुराणों के अनुसार देवी अन्नपूर्णा, मां महागौरी के अंश रूप में ही अवतरित हुईं। महाअष्टमी की पूजा में शुभ रंग का विशेष महत्व है।

नवम् सिद्धिदात्री

भगवती के नौवें स्वरूप में मां सिद्धिदात्री के पूजन का विधान है। इनका मंदिर गोलघर स्थित सिद्धमाता गली में है। सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाली मां भगवती का एक स्वरूप सिद्धिदात्री भी है। सिद्धि की इच्छा से उनकी आराधना की जाती है। मां सिद्धिदात्री को देवता चारों ओर से घेरे रहते हैं। उनका ध्यान करने से मनुष्य संसार की अभिष्ट सिद्धियों को प्राप्त कर नाना प्रकार के सुखों को भोगते हुए मोक्ष प्राप्त करता है। सिद्धिदात्री दुर्गा का ध्यान मंत्र है-'सिद्ध गंधर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि, सेव्य माना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी'।

मान्यता है कि इस मंत्र के जप से साधक निर्धन नहीं रहता। सिद्धिदात्री महात्रिपुरसुंदरीरूप में विद्यमान हैं। 'श्री' वृद्धि के लिए यह बीजमंत्र माना जाता है।

उत्तर प्रदेश भाईचारा कमेटी की ओर से मंगलवार को रामापुरा स्थित रामेश्वरी गोयल कन्या विद्यालय में नौ देवी स्वरूप कन्याओं का पूजन-आरती की गई। जम्मू कश्मीर में फंसे लोगों की सलामती की प्रार्थना की गई।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित मधुबन उद्यान में मंगलवार को दुर्गापूजा का शुभारंभ हो गया। विधि विधान से कलश स्थापना के साथ मां दुर्गा प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के आला अधिकारियों ने मां का दर्शन किया। शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस अवसर पर 25 विद्यार्थी प्रतिभागियों ने दस प्रस्तुतियां दीं। इसमें नृत्य, गायन, समूहगान, समूह नृत्य आदि शामिल था। बच्चों की प्रस्तुतियां देखकर दर्शक विभोर हो गए।


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