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प्रेम में तर्क-वितर्क नहीं किया जाता है

भक्ति निश्छलता को कहते हैं। सच पूछा जाए तो भक्ति समर्पण है और जहां समर्पण होता है, वहां तर्क-वितर्क नहीं होता।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 26 May 2016 11:31 AM (IST)Updated: Thu, 26 May 2016 11:47 AM (IST)
प्रेम में तर्क-वितर्क नहीं किया जाता है

भक्ति निश्छलता को कहते हैं। सच पूछा जाए तो भक्ति समर्पण है और जहां समर्पण होता है, वहां तर्क-वितर्क नहीं होता। समर्पण में प्रश्न नहीं पूछा जाता। जिस प्रकार जब तक नदी सागर में मिल नहीं जाती है, तब तक इठलाती-बलखाती हुई चलती है, लेकिन ज्यों ही सागर में मिलती है, नदी के मन के सारे प्रश्न स्वत: गिर जाते हैं और वह शांत हो जाती है। इसी तरह जब तक जीव परमात्मा से अलग रहता है, विविध योनियों में भटकता रहता है, तब तक उसकी ऐंठन बनी रहती है, लेकिन ज्यों ही परमात्मा की निकटता उसे प्राप्त होती है, वह शांत हो जाता है। उसे छलांग लगाने की न कोई आवश्यकता है और न कोई संभावना है।

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यह जो सारा संसार दृश्यमान हो रहा है, वह माया के कारण विभिन्न् रूपों में दिख रहा है। इसी माया के त्याग को भक्ति कहते हैं। शास्त्रों में जिस भक्ति की चर्चा है, वह शास्त्रों की भक्ति है, जिसकी चर्चा बड़े प्रवचनों में होती है। लेकिन खेत की मेड़ों और गांव की चौपालों पर जिस भक्ति की चर्चा होती है, वह शास्त्रों से अलग तरह की भक्ति है। विज्ञान में भले ही कहा जाता हो कि कारण के बगैर कार्य नहीं होता, लेकिन किसी मां से यह नहीं पूछा जाता कि तुमने किस विधि से अपने पुत्र को प्यार किया। पति-पत्नी के बीच जो दांपत्य-मैत्री है, उसे परिभाषित नहीं किया जा सकता।

दो प्रेमियों के प्रेम को किसी परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता। ठीक उसी प्रकार मीरा से नहीं पूछा जा सकता कि आपने किस विधि से कृष्ण को स्वीकार किया। गांव में बिना किसी शास्त्रज्ञान के जो 'सीताराम-सीताराम" कह रहे हैं, उनसे नहीं पूछा जा सकता कि उनकी भक्ति की विधि क्या है। मनोवैज्ञानिक फ्रायड का कहना है कि जब तक मनुष्य के पास विवेक बना रहता है, वह समर्पण नहीं कर सकता और भक्ति समर्पण बगैर घटित नहीं होती। प्रेम में तर्क-वितर्क नहीं किया जाता है।

दरअसल होश विवेक को कहते हैं और जहां विवेक होता है, वहां समर्पण नहीं होता। किसी भक्त से यह पूछना गलत है कि तुमने प्रभु से कैसे और किस विधि से प्रेम किया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि जब कोई भक्त प्रभु से मिलता है तो उसे किसी विधि का ज्ञान नहीं होता।


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