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वसंत में प्रेम है, प्रेम में वसंत

वसंत का मौसम आदि काल से प्यार का मौसम कहलाता रहा है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन वसंत का अवतरण होता है और इसी के साथ वसंतोत्सव की शुरुआत होती है। ‘सरस्वती कंठाभरण’, मात्स्यसुक्त आदि ग्रंथों में इसकी साफ-साफ चर्चा की गई है। प्रेम सागर में भी गोप-गोपियों के साथ

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 13 Feb 2016 02:44 PM (IST)Updated: Sat, 13 Feb 2016 02:55 PM (IST)
वसंत में प्रेम है, प्रेम में वसंत

वसंत का मौसम आदि काल से प्यार का मौसम कहलाता रहा है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन वसंत का अवतरण होता है और इसी के साथ वसंतोत्सव की शुरुआत होती है। ‘सरस्वती कंठाभरण’, मात्स्यसुक्त आदि ग्रंथों में इसकी साफ-साफ चर्चा की गई है। प्रेम सागर में भी गोप-गोपियों के साथ श्रीकृष्ण के वसंतोत्सव मनाने का वर्णन है। यह भगवान श्रीकृष्ण और कामदेव का पर्व माना गया है। वसंत पंचमी से इसकी शुरुआत होती है और चैत्र कृष्ण पक्ष के पंचमी के दिन इसका अंत होता है। वसंतोत्सव के साथ ही प्यार का प्रतीक रंग-गुलाल भी शुरू हो जाता है। सिंगार रस और प्रेम से ओत-प्रोत होली, चइता व धमार का गायन शुरू हो जाता है। प्रकृति अपने यौवन पर होती है।

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नवजीवन का प्रतीक वसंत

शास्त्रों में वसंतोत्सव का जिक्र होना बताता है कि यह पर्व भारतीय संस्कृति के पुराने युग से हिस्सा रहा है। खेतों में सरसों के फूलों से पूरी धरती वसंती रंगों में रंगी दिखती है। गेहूं की बालियां निकलती बालियां, आम के नए पत्ते और मंजरी, कोयल की कूक, धीरे-धीरे बहती हल्की ठंडी हवाएं मौसम व माहौल को और भी मादक बना देती हैं, इसीलिए इसे निरस जीवन से सरस जीवन में प्रवेश करने का पर्व भी कहते हैं। इस मौसम में हर दिल मोहब्बत करने को मचल उठता है। यही वजह है कि इसे मदनोत्सव भी कहा गया है।

पीले रंग का खास महत्व

वसंतोत्सव में पीले रंग का खास महत्व है, इसीलिए पीले रंग को वसंती रंग भी कहा जाता है। पीला रंग धर्मानुसार भी शुभ माना जाता है। हर शुभ काम में पीला वस्त्र धारण करने की परंपरा रही है। वसंतोत्सव में युवा भी पीले रंग में रंगे नजर आते हैं।

ऋतुओं का राजा है वसंत

वसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। कालिदास ने अपनी रचनाओं में वसंत को शिद्दत से याद किया है। रामचरित मानस में कहा गया है कि वसंत में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों सुलभ होते हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान ने वसंत का वर्णन करते हुए कहा है कि दुल्हन बनी धरती अंग-अंग से पुलकित है।संत का मौसम आदि काल से प्यार का मौसम कहलाता रहा है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन वसंत का अवतरण होता है और इसी के साथ वसंतोत्सव की शुरुआत होती है। ‘सरस्वती कंठाभरण’, मात्स्यसुक्त आदि ग्रंथों में इसकी साफ-साफ चर्चा की गई है। प्रेम सागर में भी गोप-गोपियों के साथ श्रीकृष्ण के वसंतोत्सव मनाने का वर्णन है। यह भगवान श्रीकृष्ण और कामदेव का पर्व माना गया है। वसंत पंचमी से इसकी शुरुआत होती है और चैत्र कृष्ण पक्ष के पंचमी के दिन इसका अंत होता है। वसंतोत्सव के साथ ही प्यार का प्रतीक रंग-गुलाल भी शुरू हो जाता है। सिंगार रस और प्रेम से ओत-प्रोत होली, चइता व धमार का गायन शुरू हो जाता है। प्रकृति अपने यौवन पर होती है।


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