माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप को कूष्माण्डा देवी कहते हैं
माँ के दिव्य स्वरूप का ध्यान हमारे समस्त अमांगलिक व अशुभ विचारों का नाश करके संस्कारमय जीवन जीने की राह दिखाता है।
माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप को कूष्माण्डा देवी कहते हैं। यह देवी अपनी हँसी मात्र से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करती हंै। इस कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी नाम की संज्ञा दी गई है। यह देवी सूर्यमण्डल के भीतर ही निवास करती हैं। सूर्य के समान देदीप्यमान इनकी कान्ति व प्रभा है। इन्हीं के तेज व प्रकाश से दसों-दिशायें प्रकाशित हो रही हैं। इनकी आठ भुजाएं हैं। इसी कारण ये अष्टभुजा देवी के नाम से विख्यात हैं। सिंह पर आरूढ़ देदीप्यमान देवी को कुम्हड़े की बलि अत्यन्त प्रिय है। इस कारण भी ये कूष्माण्डा देवी के नाम से विख्यात हैं।
माँ के दिव्य स्वरूप का ध्यान हमारे समस्त अमांगलिक व अशुभ विचारों का नाश करके संस्कारमय जीवन जीने की राह दिखाता है। यह हमें प्रज्ञा व तेज प्रदान करके हमारे जीवन को नैतिक व चारित्रिक रूप से सबल बनाता है। माँ के कल्याणकारी स्वरूप का ध्यान हमारी आध्यात्मिक चेतना को जागृत करके हमारी आसुरी व विध्वंशक प्रवृत्तियों का समूल नाश करता है। यह हमें जीवन के कठिन संघर्षों में भी धैर्य, आशा व विश्वास के साथ आगे, बढ़ते रहने की प्रेरणा प्रदान करता है।
माँ के देदीप्यमान स्वरूप का ध्यान हमारे निकृष्ट विचारों को जड़ से नष्ट करके हमें पवित्र विचारों से ओत-प्रोत करता है। यह हमें अज्ञान के तमस से मुक्ति प्रदान करके हमें स्वयं पर भी विजय प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करता है।माँ के ज्योतिर्मयी स्वरूप का ध्यान हमारे भीतर सतत पुरूषार्थ व क्रियाशीलता की भावना को जागृत करके कल्याण के मार्ग पर उश्ररोश्रर बढ़ते रहने की राह दिखाता है। यह हमें दिव्य शक्तियों के सुसंपन्न करके हमें सर्वथा भय-मुक्त करता है।
ध्यान मंत्र
सुरासंपूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।
इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है।
- पं अजय कुमार द्विवेदी