श्रीकृष्ण जन्मस्थान के त्योहार
बैकुंठ से भी ज्यादा खूबसूरत स्थान श्रीकृष्ण जन्म भूमि। ब्रज शैली का खूबसूरत चित्ताकर्षक मंदिर। जहां दर्शन करते ही भक्तों को प्रभु श्रीकृष्ण की साक्षात अनुभूति होती है। संपूर्ण भागवत भवन के ऊपरी हिस्से पर भगवान श्रीकृष्ण की मनोहर लीलाओं की चित्रकारी है। इस खूबसूरत स्थान का जीर्णोद्धार पं. मदन
मथुरा। बैकुंठ से भी ज्यादा खूबसूरत स्थान श्रीकृष्ण जन्म भूमि। ब्रज शैली का खूबसूरत चित्ताकर्षक मंदिर। जहां दर्शन करते ही भक्तों को प्रभु श्रीकृष्ण की साक्षात अनुभूति होती है। संपूर्ण भागवत भवन के ऊपरी हिस्से पर भगवान श्रीकृष्ण की मनोहर लीलाओं की चित्रकारी है। इस खूबसूरत स्थान का जीर्णोद्धार पं. मदन मोहन मालवीय की प्रेरणा से हुआ था। सोमवार को पुण्यतिथि पर उन्हें याद किया जाएगा।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान के भागवत भवन में भगवान के विभिन्न स्वरूपों, सखाओं, महान संत, राधाजी की अष्ट सखियों के दर्शन उत्कीर्ण किए गए हैं। गर्भ गृह भी द्वापर युग को जीवंत करता है। जीर्णोद्धार से पहले पं. मदन मोहन मालवीय भगवान श्रीकृष्ण के इस ऐतिहासिक एवं वंदनीय जन्मस्थान की दुर्दशा से अत्यधिक व्यथित थे। लिहाजा, इस पुण्य भूमि का पुनरुद्धार करने का उन्होंने विचार किया। जुगल किशोर बिरला की आर्थिक सहायता से सात फरवरी, 1944 में रायकृष्ण दास से 13 हजार रुपये में जन्मस्थान की भूमि प्राप्त की। स्व. कैलाशनाथ काटजू ने कब्जे मामलों के मुकदमों की पैरवी की। मुकदमे जीतने के बाद पूरी भूमि पर कब्जा लिया, लेकिन महामना की इच्छा उनके जीवन काल में पूरी न हो सकी। बाद में उनकी अंतिम अभिलाषा के अनुसार सेठ जुगलकिशोर बिरला ने 21 फरवरी, 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की और कटरा केशवदेव पर उस ट्रस्ट का अधिकार हो गया।
इसके बाद सोसायटीज पंजीकरण एक्ट के अंतर्गत एक संस्था श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ (अब सेवा संस्थान) के नाम से रजिस्ट्री कराई। इस ट्रस्ट कमेटी के प्रथम सभापति लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष स्व. गणोश वासुदेव मावलंकर थे। उनके निधन के पश्चात एक और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष तथा बिहार के राज्यपाल एम. अनंत शयनम् अय्यंगर सभापति रहे। वर्तमान में महंत नृत्य गोपाल दास महाराज सभापति हैं। 1श्रीकृष्ण जन्मस्थान के अधिशासी अधिकारी राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि जन्मस्थान का जीर्णोद्धार मदन मोहन मालवीय की प्रेरणा से हुआ। उनकी पुण्यतिथि पर सोमवार को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाएंगे। सचिव कपिल शर्मा ने बताया कि यहां के मंदिरों का निर्माण ब्रज शैली में हुआ है।
इस तरह हुआ श्रमदान-स्वामी अखंडानंद सरस्वती के सभापतित्व काल में मथुरा के युवक 15 अक्टूबर, 1953 से श्रमदान के रूप में कटरा केशवदेव के पुनरुद्धार कार्य में जुट गए। बरसों तक बाबूलाल बजाज और फूलचंद खंडेलवाल के नेतृत्व में कार्य चलता रहा। इसके बाद गर्भगृह तथा भव्य भागवत भवन का पुनरुद्धार हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ। भागवत भवन के निर्माण में बड़ी धनराशि औद्योगिक घराने डालमिया परिवार द्वारा भी दी गई थी।
जन्मस्थान में मंदिर-गर्भ गृह, शिखर मंडप, योगमाया मंदिर, भागवत भवन, केशवदेव मंदिर आदि।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी- इस दिन बैकुंठ से भी ज्यादा मथुरा का महत्व है। यह आयोजन मुख्य है।
नंदोत्सव-श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन नंदोत्सव की धूम रहती है।
शरद पूर्णिमा-श्रीकृष्ण चबूतरे पर पवित्र चांदनी रात में महारास का आयोजन होता है।
दीपावली- केशवदेव मंदिर में दीपदान का आयोजन होता है।
अन्नकूट- श्रीगिरिराज मंदिर, श्रीराधाकृष्ण मंदिर एवं अन्य मंदिरों में छप्पन भोग एवं अन्नकूट अर्पित किया जाता है।
श्रीगोपाष्टमी-गोशाला में गायों का श्रृंगार कर पूजन किया जाता है। भरनी एकादशी पर होली महोत्सव का आयेाजन।