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श्रीकृष्ण के प्रति मेरा यही प्रेम और आनंद विगलित होकर आंसू के रूप में बाहर आ गया

इस निरक्षर व्यक्ति को सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त हुआ था। ईश्वर का दर्शन लाभ हुआ था, क्योंकि उसके हृदय में ईश्वर के प्रति प्रगाढ़ प्रेम था।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 01 Mar 2017 10:40 AM (IST)Updated: Wed, 01 Mar 2017 10:46 AM (IST)
श्रीकृष्ण के प्रति मेरा यही प्रेम और आनंद विगलित होकर आंसू के रूप में बाहर आ गया
श्रीकृष्ण के प्रति मेरा यही प्रेम और आनंद विगलित होकर आंसू के रूप में बाहर आ गया

 दक्षिण भारत में तीर्थयात्रा करते समय एक स्थान पर चैतन्यदेव ने देखा कि एक भक्त श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ कर रहा है और पास ही एक भक्त उसे सुनकर अत्यंत भावुक हो रहा है। उसकी आंखों से आंसुओं की धार बह रही

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थी। चैतन्यदेव को बड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि वास्तव में वह भक्त निरक्षर था। वह गीता में उल्लिखित श्लोकों के गूढ़ अर्थों को समझ पाने में असमर्थ था।
गीता के उस अध्याय का पाठ समाप्त करने के उपरांत चैतन्यदेव ने उस भक्त से रोने का कारण पूछा। उसने उत्तर दिया, ‘महाराज, यह सच है कि मैं गीता का एक अक्षर भी नहीं समझता, पर गीता पाठ सुनते समय मेरे मन में कुरुक्षेत्र के मैदान में रथ पर अर्जुन के सामने गीता का उपदेश देते भगवान श्रीकृष्ण की मनोहर मूर्ति की छवि बन रही थी। यह दृश्य देखकर मेरी आंखों से प्रेम और आनंद के आंसू रोके नहीं रुके। भगवान श्रीकृष्ण के प्रति मेरा यही प्रेम और आनंद विगलित होकर आंसू के रूप में बाहर आ गया।’
इस निरक्षर व्यक्ति को सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त हुआ था। ईश्वर का दर्शन लाभ हुआ था, क्योंकि उसके हृदय में ईश्वर के प्रति प्रगाढ़ प्रेम था।

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