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जानें भगवान जगन्‍नाथ रथयात्रा दर्शन से जुड़ी हर बात

इस माह 25 जून से भगवान जगन्‍नाथ की रथ यात्रा का शुभारंभ होने वाला है। इससे पुर्व आइये जाने रथयात्रा से जुड़े कुछ खास रोचक तथ्‍य।

By molly.sethEdited By: Published: Thu, 15 Jun 2017 11:55 AM (IST)Updated: Mon, 19 Jun 2017 01:57 PM (IST)
जानें भगवान जगन्‍नाथ रथयात्रा दर्शन से जुड़ी हर बात
जानें भगवान जगन्‍नाथ रथयात्रा दर्शन से जुड़ी हर बात

 1- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अलग-अलग रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की यात्रा पर निकलते हैं। 
2- भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदिघोष, बलभद्र के रथ नाम तालधव्ज और सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है। इन रथों को रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है।
3-  पुरी का जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है और करीब 800 वर्ष से अधिक पुराना है।
4-  रथयात्रा में सबसे आगे लाल और हरे रंग का बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में काले या नीले और लाल रंग का देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे लाल और पीले रंग का भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। 
5- भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।

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6- इन रथों में कहीं भी लोहे के कीलों और पेंचों का प्रयोग नहीं किया जाता। सभी रथ नीम की पवित्र लकड़ियों से बनाये जाते है, जिसे ‘दारु’ कहते हैं।

7- रथों के लिए लकड़ी ढूंढने का काम बसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है और निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होता है।

8-  रथों का निर्माण पूरा होने पर 'छर पहनरा' की पूजा होती है। इसके तहत पुरी के राजा पालकी में आकर इन तीनों रथों की पूजा करते हैं और ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मण्डप और रास्ते को साफ़ करते हैं।

9- आषाढ़ माह में शुक्लपक्ष की द्वितीया को रथयात्रा आरम्भ होती है। उसके बाद ये गुंडीचा मंदिर पहुंचती है जिसे भगवान की मौसी का घर माना जाता है। यहां भक्‍तों को भगवान के दर्शन होते हैं जिन्‍हें ‘आड़प-दर्शन’ कहते हैं। 

10- रथयात्रा के तीसरे दिन पंचमी को देवी लक्ष्मी, भगवान जगन्नाथ को ढूंढते हुए यहां आती हैं। जहां द्वैतापति दरवाज़ा बंद कर देते हैं, इस पर रुष्ट देवी लक्ष्मी रथ का पहिया तोड़ कर ‘हेरा गोहिरी साही पुरी’ नाम के लक्ष्मी मंदिर में लौट जाती हैं। बाद में भगवान जगन्नाथ उन्‍हें मनाते भी हैं। 

11-  इसके बाद आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ पुन: मुख्य मंदिर की ओर यात्रा प्रारंभ करते हैं। इस वापसी यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।

12-  मंदिर वापस पहुंचने के बाद भी सभी प्रतिमाएं रथ में ही रहती हैं और अगले दिन एकादशी को द्वार खोले जाते हैं, तब विधिवत स्नान करवा कर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ उन्‍हें पुन प्रतिष्ठित किया जाता है।


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