जानिए पुराणों और आयुर्वेद में मेंहदी की महिमा
मेहंदी जिसे हिना भी कहते हैं, हिंदू धर्म के सोलह श्रंगार में से एक है। दरअसल मेंहदी एक पत्ती की बनी होती है। इसे हाथों, पैरों, नाखूनों बाजुओं आदि पर लगाया जाता है। वनस्पति विज्ञान की भाषा में कहें तो मेंहदी का वानस्पतिक नाम 'लॉसोनिया इनर्मिस' है और यह लिथेसिई
मेहंदी जिसे हिना भी कहते हैं, हिंदू धर्म के सोलह श्रंगार में से एक है। दरअसल मेंहदी एक पत्ती की बनी होती है। इसे हाथों, पैरों, नाखूनों बाजुओं आदि पर लगाया जाता है। वनस्पति विज्ञान की भाषा में कहें तो मेंहदी का वानस्पतिक नाम 'लॉसोनिया इनर्मिस' है और यह लिथेसिई कुल का कांटेदार पौधा है।
यह उत्तरी अफ्रीका, अरब देश, भारत तथा पूर्वी द्वीप समूह में पाया जाता है। हिना एक पुष्पीय पौधा होता है जिसका वैज्ञानिक नाम लॉसोनिया इनर्मिस है। इसे त्वचा, बाल, नाखून, चमड़ा और ऊन रंगने के काम में प्रयोग किया जाटा है। इससे ही मेहंदी भी लगाई जाती है।
मेहंदी लगाने के लिए मेंहदी के पौधे की पत्तियों को सुखाकर पीसा जाता है। फिर उसका पेस्ट लगाया जाता है। कुछ घंटे लगने पर ये रच कर लाल-मैरून रंग देता है, जो लगभग सप्ताह भर चलता है।
मेंहदी श्रृंगार के साथ ही अपना आयुर्वेद महत्व भी रखती है। मेहंदी के पत्तों में ऐसे तत्व पाये जाते हैं, जिनसे खाघ पदार्थों को दूषित करने वाले कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। मेहंदी की छाल का प्रयोग पीलिया, बढे़ हुए जिगर और तिल्ली, पथरी, जलन, कुष्ठ और चर्म रोगों में किया जाता है। मेहंदी के चूर्ण में जरा सा नींबू का रस मिला कर हाथों एवं पैरों के नाखूनों पर इसका लेप करने से नाखूनों का खुरदरापन समाप्त हो जाता है और उनमें चमक आती है।
हिंदू पौराणिक कथाओ के अनुसार मान्यता है कि जब मां दुर्गा, देवी काली के रूप में राक्षसों का संहार कर रही थी, तो क्रोध में देवी को इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि उनका कपाल पूरी तरह रक्त से भर गया है। और सारे राक्षसों का संहार हो चुका है लेकिन उनका रूप काफी भयावह था।
देवी के इस रूप को देखकर ऋषि-मुनि और अन्य देवता परेशान हो गए। सभी देवराज इन्द्र के पास पहुंचे, देवराज इन्द्र ने उन ऋषि-मुनियों को बताया कि मां काली के गुस्से को शांत केवल भगवान शिव ही कर सकते हैं।
सभी भगवान शिव के पास पहुंचे। उनकी बात सुनकर भगवान शंकर ने देवी को बताया कि उनका काली रूप सभी को भयभीत कर रहा है। ये बात जानकर मां महाकाली देवी ने अपनी इच्छा शक्ति से एक देवी को प्रकट किया, जो सुरसुंदरी कहलाईं और वह मां काली के आदेश पर औषधि बनकर हाथ-पैरों में सज गई। तभी से मेहंदी को औषधि माना जाता है, वहीं ये मेहंदी का पौधा पूजा और साधना का एक आवश्यक अंग बन गया।