सूर्य प्रवेश कर रहा वृषभ राशि में, स्नान दान से पुण्य का योग
ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली संक्रांति को वृषभ संक्रांति व ज्येष्ठ संक्रांति भी कहते हैं। वृषभ संक्रांति के दिन सूर्य वृष राशि में प्रवेश करते हैं। इस साल 14 मई को पड़ने वाली संक्रांति में स्नान दान से पुण्य का योग है...
12 राशियों सूर्य करते हैं प्रवेश:
हिंदू शास्त्रों के मुताबिक सूर्य देव पूरे वर्ष में एक बार सभी 12 बार राशियों में प्रवेश करते हैं। इस दौरान जब वह एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। उस पूरे चक्र को संक्रांति कहते हैं।
दूसरे महीने ज्येष्ठ की शुरुआत:
हिंदू कलेंडर के मुताबिक वृषभ संक्रांति का त्योहार दूसरे महीने यानी कि ज्येष्ठ की शुरुआत को दर्शाता है। ऐसे में इस बार सूर्य 14 मई को मेष राशि से वृषभ राशि को स्थानांतरित हो रहे हैं।
उपवास करना भी शुभ होता:
रविवार 14 मई को सूर्य रात्रि 10 बजकर 57 मिनट पर वृष राशि में प्रवेश करेंगे। इस दिन उपवास भी किया जाना शुभ होता है। संक्रांति का पुण्यकाल दोपहर बाद से शुरू होगा।
भगवान शिव का वाहक है बैल:
संस्कृत में शब्द 'वृषभ' का अर्थ 'बैल' है। इसके अलावा हिंदू धर्म में, 'नंदी', भगवान शिव के वाहक को बैल माना जाता है। जिससे धार्मिक शास्त्रों में वृषभ संक्रांति का विशेष धार्मिक महत्व है।
ऋषि संक्रांति स्वरूप की पूजा:
इस दिन ऋषि संक्रांति स्वरूप' को भी पूजते हैं। जिससे सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र स्नान करना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव के नाम 'ऋषभरुद्र' व सूर्य देव की की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
जमीन पर सोना फलदायी:
पूजा के बाद खीर आदि का भोग लगाया जाता है। उसके बाद उसे परिवार समेत प्रसाद स्वरूप गृहण किया जाता है। वृषभ संक्रांति को रात में जमीन पर सोना चाहिए। हर मनोकामना पूर्ण होती है।
पानी सहित घड़ा व गोदान:
शास्त्रों के मुताबिक दान से पुण्य मिलेगा। इस दिन पानी सहित घड़े का दान करने से विशेष पुण्य मिलता है। वहीं शास्त्रों के मुताबिक वृषभ संक्रांति के दिन गोदान का करने का बड़ा महत्व होता है।
मौसम की शुरुआत का प्रतीक:
बतादें कि वृषभ संक्रांति भारत के दक्षिणी राज्यों में वृषभ संक्रामन के रूप में भी प्रसिद्ध है। वहीं सौर कैलेंडर के अनुसार वृषभ मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। यह लगभग पूरे देश में अलग-अलग नामों से मनायी जाती हैं।
ब्रश संक्रांति के रूप में:
तमिल कैलेंडर में वृषभ संक्रांति वैगसी मासुम के आगमन का, मलयालम कैलेंडर में 'एदाम मसम' और बंगाली कैलेंडर में 'ज्योत्तो मश' का प्रतीक है। वहीं ओडिशा में यह 'ब्रश संक्रांति ' के रूप में मनायी जाती है।