किन्नौर में पशुओं को नमक खिलाकर मनाई जाती जन्माष्टमी
जिला किन्नौर की जनजातीय परंपराओं में कृष्ण जन्माष्टमी का अपना ही महत्व है। मुंबई की दही-हांडी और गोकुल-मथुरा की परंपराओं से कोसों दूर जिला किन्नौर के जनजातीय लोग युला गांव के ऊंचे पहाड़ पर इकट्ठे होते हैं। यहां श्रद्धालु 21 हजार फुट से भी ज्यादा उंचाई पर बने भगवान देन मंदिर में पहुं
किन्नौर [हिमाचल प्रदेश], संवाद सहयोगी। जिला किन्नौर की जनजातीय परंपराओं में कृष्ण जन्माष्टमी का अपना ही महत्व है। मुंबई की दही-हांडी और गोकुल-मथुरा की परंपराओं से कोसों दूर जिला किन्नौर के जनजातीय लोग युला गांव के ऊंचे पहाड़ पर इकट्ठे होते हैं। यहां श्रद्धालु 21 हजार फुट से भी ज्यादा उंचाई पर बने भगवान देन मंदिर में पहुंचकर सब से पहले पशुओं को नमक खिला कर भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। पूरी, हलवा और तरह-तरह के भोग बनाए जाते हैं और पहाड़ों पर निवास करने वाले किन्नर, गंधर्व और अपसराओं की पूजा की जाती है। यहां हिंदू और बौद्ध के अतिरिक्त भिन्न-भिन्न समुदायों के लोग संयुक्त रूप से पूजा-अर्चना करते हैं। लोगों की श्रद्धा को देखते हुए अब श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के इस पर्व को जिला स्तरीय पर्व के रूप में मनाया जाता है, इसमें जिले के अधिकारी विशेष रूप से भाग लेते हैं। इस अवसर पर सखियां अथवा धर्म बहन बनाने की भी प्रथा है, वहां पहुंचे सभी लोग भाई-बहन के पवित्र बंधन में बंधते हैं, इसे स्थानीय बोली में छोडोक्स कहते हैं। श्रद्धालु ब्रह्मा कमल और अन्य कई प्रकार के फूल इकट्ठा करते हैं और जमकर मेला लगाते हैं।
यह है विशेषता
भगवान देन मंदिर से कुछ ही दूरी पर पांडवों द्वारा अपने अज्ञात वास के दौरान यहां समय बिताया था, जहां पानी को नहर बना कर खोला गया है लोग इस में अपनी टोपी लगाकर शुभ और अशुभ होने की बात जानने की कोशिश करते हैं।
इस से कुछ ही दूरी पर धान की खेती है। बताया जाता है कि इस जगह पर धान से मिलता-जुलता घास है जो केवल यहीं पर है और किसी क्षेत्र में नहीं पाया जाता। इस बड़े मैदान में पानी अपने आप लगता रहता है लोगों का मानना है कि खेत में पांडव अभी भी पानी को बदल-बदल कर सींचते है।