अल-इसरा वल मेराज की रात खुदा ने मुहम्मद साहब को मक्का से यरुशलम बुलाया
अल-इसरा वल मेराज एक ऐसी रात का सफ़र है, जिसे इस्लाम के पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब ने किया था। शबे मेराज पर विशेष...
अल-इसरा वल मेराज एक ऐसी रात का सफ़र है, जिसे इस्लाम के पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब ने किया था।
किताबों के अनुसार, यह सफ़र इस्लामिक महीने रजब की 27वीं रात में हुआ था। यह न सि़र्फ एक जिस्मानी
सफ़र था, बल्कि एक आध्यात्मिक सफ़र भी था। इसरा का मतलब होता है रात का सफ़र और अलइसरा का मतलब यहां एक विशेष रात के सफ़र से है। वहीं मेराज का मतलब होता है सबसे ऊपर उठना। हज़रत मुहम्मद साहब का यह सफ़र तब शुरू हुआ, जब उनके जीवन के दो महत्वपूर्ण लोग और उस समय उनके सबसे बड़े समर्थक उन्हें इस दुनिया से छोड़कर जा चुके थे।
एक थीं उनकी पत्नी ख़दीजा और दूसरे थे उनके चाचा अबु तालिब। यह मुहम्मद साहब के जीवन का वह दौर था, जब उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। उनके अपने कुरैश समाज के लोगों ने उनका पूर्ण बहिष्कार कर उन्हें समाज से निष्कासित कर दिया था। मक्का सउदी अरब के एक बड़े रेगिस्तान के बीच बसा एक शहर है।
उस समय अगर समाज किसी व्यक्ति को निष्कासित कर देता था, तो उस व्यक्ति को अपना जीवन रेगिस्तान में बिताना पड़ता था। वह व्यक्ति रेगिस्तान के कठिन वातावरण में खुद ही अपना दम तोड़ देता। जीवन के इतने कठिन समय में भी हज़रत मुहम्मद साहब का खुदा से विश्वास कभी नहीं डिगा।
माना जाता है कि अल-इसरा वल मेराज वह रात है, जब खुदा की तरफ़ से एक ख़ास सवारी भेज कर मुहम्मद साहब को मक्का से यरुशलम लाया गया। आज के समय में मक्का से यरुशलम का सफ़र कुछ घंटों में किया जा सकता है, लेकिन उस ज़माने में ऊंट से यह सफ़र तय करने में कम से कम दो महीने लग जाते थे। यरुशलम पहुंचकर मुहम्मद साहब ने वहां स्थित अल-अकसा मस्जिद में नमाज़ पढ़ी और फिर वहां से शुरू हुआ उनका एक
ऐसा आध्यात्मिक सफ़र, जिसे मेराज कहा जाता है। मेराज में खुदा ने मुहम्मद साहब को एक दूसरी दुनिया से परिचित कराया, जिसका रास्ता इस दुनिया से होता हुआ गुज़रता है। जो व्यक्ति यहां सभी के साथ अच्छा व्यवहार करता है और धार्मिक जीवन व्यतीत करता है, उसके लिए उस दूसरी दुनिया में खुशख़बरी है। जिस व्यक्ति ने ज़मीन पर आतंक फैलाया और अधर्मी हुआ, ऐसे व्यक्ति के लिए दूसरी दुनिया में एक बुरा ठिकाना है।
हज़रत मुहम्मद साहब के इसी सफ़र के दौरान इस्लाम में पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ना भी अनिवार्य किया गया। एक व्यक्ति का वजूद खुदा की इस विशालकाय कायनात के सामने क्षुद्र है, लेकिन वही व्यक्ति खुदा के लिए समस्त संसार से ज़्यादा महत्व रखने लगता है, यदि वह अपने जीवन का सही उपयोग करे और दुनिया व अध्यात्म के बीच एक संतुलन बनाते हुए जीवन बिताए।
रामिश सिद्दीक़ी
(लेखक इस्लामिक विषयों के जानकार हैं )