3 साल पहले मिले कच्छपघात कालीन विष्णु मंदिर के अवशेष हो रहे चोरी
मुरैना में शनिश्चरा के जंगलों में अब से तीन साल पहले मिले हजार साल पुराने विष्णु मंदिर के अवशेष चोरी हो रहे हैं।
मुरैना। शनिश्चरा के जंगलों में अब से तीन साल पहले मिले 1 हजार साल पुराने विष्णु मंदिर के अवशेष चोरी हो रहे हैं। इन भग्नावशेषों में कुछ प्राचीन प्रतिमाएं भी शामिल हैं, जो अब यहां नहीं हैं। पुरातत्व विभाग ने जुलाई 2012 में मिले इस मंदिर के जीर्णोद्घार संबंधी रिपोर्ट आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को भेजी थी।
पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने इस बात का उल्लेख भी किया था कि मंदिर के भग्नावशेष आस पास ही मौजूद हैं, इसलिए इस मंदिर को दोबारा बनाया जा सकता है, लेकिन जैसे-जैसे ये भग्नावशेष गायब होते जा रहे हैं। इस मंदिर के पुराने स्वरूप में लौटकर आने की संभावना भी घटती जा रही है।
जुलाई 2012 में प्राचीन शनि मंदिर से करीब डेढ़ किमी दूर घने जंगलों में एक टीलानुमा उभार घास पत्ते में छिपा हुआ था। जब यह घास पत्ते हटाए गए तो यहां 10वीं सदी(उत्तरार्ध) में बना कच्छपघात कालीन मंदिर मिला। पुरातत्व विभाग के डिप्टी डायरेक्टर सहित बाहर से बुलाए गए पुरातत्वविदों ने बताया कि यह मंदिर हू-ब-हू ग्वालियर के शहस्त्र बाहु मंदिर जैसा है।
विशेषज्ञों ने पाया कि मंदिर के टूटे हुए सभी हिस्से आसपास बिखरे हुए हैं। इसलिए इसे दोबारा बनाया जा सकता है। इस बात की रिपोर्ट एसआई को भेजी गई, लेकिन इसके बाद न तो यहां पर काम शुरू हुआ और नहीं मंदिर के भग्नावेष सुरक्षित रहे। यही कारण रहा कि मंदिर के कुछ हिस्से को आस-पास के निर्माणों में लगा दिया गया तो कुछ महत्वपूर्ण प्रतिमाएं अब यहां से गायब हैं, जिनके चोरी होने की संभावनाएं जताई जा रही हैं।
रथ पर विराजे विष्णु की थी प्रतिमा
रिपोर्ट के अनुसार मंदिर के अधिष्ठान भाग(वेदीबंद) साबुत है। इसके तल वाले हिस्से पर मंदिर का गर्भगृह और मंडप भी मौजूद है। इस मंदिर का शिखर टूटा हुआ था। और मंदिर की मुख्य प्रतिमा रथ पर विराजे हुए विष्णु की थी। अधिष्ठान के नीचे देवी देवताओं की मूर्तियां बनी हुई थीं। जिनमें गणेश, विष्णु, ब्रह्मा, कार्तिकेय की प्रतिमाएं ललिताशन में थीं, जबकि मंदिर का दक्षिण की तरफ वाला हिस्सा पूरी तरह से ढह चुका था।
प्रतिहार शैली में बना कुंड भी नहीं हो सका संरक्षित
मंदिर के पास ही पुरातत्वविदों को एक कुंड भी मिला था। जो प्रतिहार शैली में बना हुआ था। कच्छपघात और प्रतिहार वास्तु शैली के कुछ और मंदिर भी इस कुंड के आसपास होने पाए गए थे, लेकिन अब इनके निशान और भी मिट गए हैं। ऐसे में अगर मंदिर के संरक्षण का काम शुरू नहीं हुआ तो मंदिर का बचा खुचा हिस्सा भी नष्ट हो जाएगा। क्योंकि मंदिर के ज्यादातर भग्नावशेष लगातार यहां से गायब होते जा रहे हैं और स्थानीय लोगों को भी इनके महत्व का पता नहीं है।
शनिश्चरा के जंगलों में मिला विष्णु मंदिर 10वीं सदी का है। इस मंदिर का अध्ययन कर 2012 में ही रिपोर्ट आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को भेज दी थी। मंदिर के जीर्णोद्घार आदि का काम उन्हें ही करवाना होता है। वह मंदिर कच्छपघात और प्रतिहार शैली में निर्मित है। पुरातत्व की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। एसआर वर्मा, डिप्टी डायरेक्टर पुरातत्व संग्रहालय एवं अभिलेखागार ग्वालियर