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केदारनाथ डायरी

इंतजार के आठ दिन और। केदार बाबा के दर के द्वार खुलने में अब ज्यादा समय नहीं है। गुप्तकाशी में रात अभी सर्द है, लेकिन सुबह सूरज हवा में गुनगुनेपन का अहसास कराने लगता है। केदारनाथ के इस सफर में हम सुबह जल्द ही सोनप्रयाग के लिए रवाना हो गए।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 16 Apr 2015 01:14 PM (IST)Updated: Thu, 16 Apr 2015 01:17 PM (IST)
केदारनाथ डायरी

सोनप्रयाग। इंतजार के आठ दिन और। केदार बाबा के दर के द्वार खुलने में अब ज्यादा समय नहीं है। गुप्तकाशी में रात अभी सर्द है, लेकिन सुबह सूरज हवा में गुनगुनेपन का अहसास कराने लगता है। केदारनाथ के इस सफर में हम सुबह जल्द ही सोनप्रयाग के लिए रवाना हो गए। 38 किलोमीटर की यह यात्रा कल के अनुभव से काफी अलग निकली। अब तक आशा और आशंका के बीच झूलता सफर उम्मीदों की सड़क पर कुलांचे भरने लगा है।

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हालांकि सड़क पर पड़े गड्ढे कुछ झटका तो दे रहे हैं, लेकिन इस डगर पर आस्था डिगने वाली नहीं है। थोड़ा आगे पहुंचने पर पहाड़ का एक धूसर भाग ठिठकने पर मजबूर करता है। यह है बडासू स्लाइडिंग जोन। सड़क पर तकरीबन 25 मीटर का यह भाग बारिश में श्रद्धालुओं की परीक्षा लेता है। खैर, अभी यह शांत है और आराम से निकल गए। करीब पौन घंटे बाद 14 किलोमीटर तय कर हम फाटा पहुंचे। गुनगनी धूप कुछ तीखी लगने लगी है। कस्बे की रौनक देख महसूस हुआ कि सफर की धूप छांव में जिंदगी कभी ठिठकती नहीं। व्यापारी अपनी दुकानों की साफ सफाई में जुटे हैं। कुछ देर सुस्ताने के इरादे से हम भी एक होटल में बैठ गए। इसके मालिक हैं किशोरी सिंह सजवाण। चाय के दौरान बातचीत का सिलसिला चला तो बोले 'दो वर्ष भले ही उदासी में बीते, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। इस बार उम्मीद है कि यात्री आएंगे।Ó रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी के बीच पसरा उत्सुकता के भाव यहां उम्मीदों के उफान में तिरोहित होते नजर आते हैं। यहां लोगों के मन में आशंका के लिए कोई जगह नहीं है। खास बात यह कि वे सरकार के प्रयासों से काफी हद तक संतुष्ट नजर आ रहे हैं। व्यापारी नितिन जमलोकी कहते हैं 'सरकार भी पूरे प्रयास में यात्रा को बेहतर बनाने में जुटी है। तय है कि अब नया सवेरा होगा।Ó हल्के नाश्ते के बाद हमने आगे की राह पकड़ी। गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग के इस हिस्से में आपदा के दो साल बीतेने के बाद भी वैसा काम नहीं हुआ, जैसी उम्मीद थी। धूलधूसरित सड़क पर लगता नहीं कि डामर बिछाया गया है।

दो घंटे बाद हम सोनप्रयाग में थे। आपदा में तबाह हुआ यह कस्बा एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास कर रहा है। तब मंदाकिनी की उफनती लहरों में दो पार्किंग और सौ से अधिक दुकानें नेस्तेनाबूद हो गईं। अब नजारा बदला हुआ है। बाजार में शाम तक अच्छी चहल पहल है। स्थानीय लोगों के अलावा केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यो की जिम्मेदारी संभाल रहे नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) के श्रमिक भी यहां खरीदारी करते दिखायी दे रहे हैं। श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए होटल, लॉज और दूसरे व्यापारी तैयारी में जुटे हैं। निम से जुड़े मनोज सेमवाल कहते हैं अब यात्रा सुरक्षित है और सुकूनदायक भी। इस पर सेमवाल के साथी सोनप्रयाग के रामप्रसाद गैरोला भी सहमति जताते हैं। कहते हैं इस बार यात्रा पटरी पर आ जाएगी। तभी हल्की बूंदाबांदी होने लगी। ठंड भी बढ़ चुकी थी। हम रात के लिए ठौर तलाशने में जुट गए। अगले दिन सुबह गौरीकुंड पहुंचने से पहले आराम भी जरूरी था।


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