कल्पवासी दुखी, अगली बार आने से पहले सौ बार सोचेंगे
हजारों श्रद्धालु कल्पवास करने के लिए सालों से माघ मेला क्षेत्र में आ रहे हैं। इनमें से तमाम श्रद्धालुओं को ऐसी दिक्कत कभी नहीं हुई जैसी इस बार उठानी पड़ रही है। इस बार तो जैसे तैसे कल्पवास कर लिया किंतु अगली बार माघ मेले में आने से पहले वे
इलाहाबाद। हजारों श्रद्धालु कल्पवास करने के लिए सालों से माघ मेला क्षेत्र में आ रहे हैं। इनमें से तमाम श्रद्धालुओं को ऐसी दिक्कत कभी नहीं हुई जैसी इस बार उठानी पड़ रही है। इस बार तो जैसे तैसे कल्पवास कर लिया किंतु अगली बार माघ मेले में आने से पहले वे सौ बार सोचेंगे।
'अगर प्रशासन व्यवस्थाएं नहीं करा सकता तो मेले का आयोजन कराना ही बंद कर दे।Ó प्रशासनिक अव्यवस्था व मौसम की मार से बेहाल कल्पवासियों की जुंबा से ऐसी ही दर्द भरी बातें निकलीं।
माघ मेला की तैयारियों को शुरू से ही इस बार ग्रहण लगा रहा। पहले तो लोक निर्माण विभाग का ठेका नहीं उठने के कारण मेला क्षेत्र में मार्गो के बनाए जाने का काम देरी से शुरू हुआ। सड़कों के नहीं बनने के कारण बाकी काम में भी विलंब हुआ। तैयारियों में लगे विभागों की सुस्ती के कारण स्थिति और बिगड़ गई। प्रशासन आए दिन तैयारियों की तय सीमा की तारीख बढ़ाता रहा। आधी अधूरी तैयारियों के साथ पांच जनवरी से मेला आरम्भ हो गया। यहीं से कल्पवासियों की परेशानी का दौर भी शुरू हो गया। कल्पवासियों को एक-एक बुनियादी सुविधाओं के लिए हर कदम पर पैसे खर्च करने पड़े। विद्युत कनेक्शन के लिए अपनी जेब ढीली करनी पड़ी। पानी की आपूर्ति नहीं होने के कारण उनको काफी दूर से पानी लाना पड़ा। तीर्थ पुरोहितों के शिविर में रह रहे कल्पवासियों को नल के कनेक्शन के लिए पैसे देने पड़े। सबसे ज्यादा मुसीबत कल्पवासियों ने शौचालयों को लेकर उठाई। शौचालय लगाने के नाम पर स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों ने खुलकर लूट मचाई। बिना मुठ्ठी गरम किए काम नहीं हुआ।
वहीं प्रतिदिन गंगा स्नान में परेशानी का सामना करना पड़ा। घाट बदहाल थे तो गंगा में पानी नहीं था। पूरा मेला बीतने को आ रहा सरकारी राशन की दुकानों से एक अनाज का दाना कल्पवासियों को नहीं मिला। हालत इतने खराब हैं कि कल्पवासियों के मुंह से बार-बार यही निकल रहा है कि अगली बार कल्पवास करने आने से पहले सोचेंगे।