त्रेता का सफर कलयुग में खत्म
क्या कुदरत इतनी बेरहम हो सकती है? केदारनाथ यात्रा के प्रमुख पड़ाव रामबाड़ा को देखकर आंखें यकीन करने को तैयार नहीं। दो पहाडिय़ों के बीच एक गहरी खाई। दो साल पहले यहीं पर कहीं थे काली कमली धर्मशाला, गढ़वाल मंडल विकास निगम का अतिथि गृह, होटल, लॉज और दो-ढाई सौ
रामबाड़ा। क्या कुदरत इतनी बेरहम हो सकती है? केदारनाथ यात्रा के प्रमुख पड़ाव रामबाड़ा को देखकर आंखें यकीन करने को तैयार नहीं। दो पहाडिय़ों के बीच एक गहरी खाई। दो साल पहले यहीं पर कहीं थे काली कमली धर्मशाला, गढ़वाल मंडल विकास निगम का अतिथि गृह, होटल, लॉज और दो-ढाई सौ दुकानों वाला बाजार। पहचानने की कोशिश कर रहा हूं अमुक होटल अमुक जगह पर रहा होगा। तकरीबन 40 फीट नीचे बह रही मंदाकिनी आज शांत है, लेकिन जून 2013 में इसकी लहरें पहाड़ की चोटी को चुनौती दे रही थीं। मैं बाबा केदार के दर पर कई बार आ चुका हूं।
आपदा से पहले और आपदा के बाद भी। लेकिन हर बार रामबाड़ा को देख मन में एक कसक सी उठती है। मेरे दिलो दिमाग में यह कस्बा कहीं गहरे धंसा हुआ है। पौराणिक महत्व के रामबाड़ा के बारे में प्रसिद्ध है कि रावण वध के बाद भगवान राम शिव की तपस्या के लिए केदारनाथ आए तो यहां एक रात विश्राम किया था। तभी से रामबाड़ा श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है। वक्त का खेल देखिए, त्रेता में जन्मा यह स्थान कलयुग में पूरी तरह विलीन हो गया। आने वाली पीढ़ी अब इसे इतिहास की किताबों में ही बांचेगी। रामबाड़ा का वैभव बार-बार मेरी आंखों में घूम रहा है। बाबा के दर्शनों के लिए गौरीकुंड से पैदल चल रहे श्रद्धालु रामबाड़ा में अवश्य ठहरते थे। यहां नाश्ता या भोजन कर आगे की यात्रा के लिए योजनाएं बनतीं थीं। जब यात्रा सीजन चरम पर होता था तो तकरीबन दो से ढाई हजार लोग यहां हर वक्त रहते थे। उस रात आई महाप्रलय में इस कस्बे का नामोनिशान मिट गया। प्रलय की रात यहां कितने लोग थे, कोई नहीं जानता। मारे गए लोगों की याद में सरकार ने पिछले साल एक स्मारक बनवाया है। अब दूसरे छोर से रास्ता बनाकर लिनचोली को मुख्य पड़ाव स्थल बना दिया गया है। तीर्थपुरोहित श्रीनिवास पोस्ती कहते हैं कि यह चट्टी दुबारा विकसित की जानी चाहिए। मुद्दा सिर्फ शहर बसाना नहीं, बल्कि धार्मिक भावनाओं से भी जुड़ा है। तीर्थपुरोहित और गौरीकुंड व्यापार संघ के पूर्व अध्यक्ष महेश बगवाड़ी भी रामबाड़ा कस्बे को फिर से बसाने की पैरवी करते हैं।
रामबाड़ा को दुबारा बसाया जाना चाहिए। इस चट्टी से भगवान राम का इतिहास जुड़ा है। आपदा में यह पूरी तरह तबाह हो चुकी है, लेकिन सरकार इसे दुबारा उसी तरह तो नहीं बसा सकती जैसे पुरानी थी, लेकिन इसका अस्तित्व को बचाए रखने के लिए यहां पर पुनर्निर्माण कार्य कर कुछ स्थाई निर्माण करना चाहिए।
कुबेरनाथ पोस्ती तीर्थपुरोहित,
केदारनाथ पैदल मार्ग की स्थित चट्टियां भले ही आपदा में तबाह हो गई हैं, लेकिन सरकार को इसके अस्तित्व बचाने के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए। सरकार ही राम से जुड़ी इस चट्टी को दुबारा से स्थापित कर सकती है। यह भोले बाबा के दर्शनों को आने वाले यात्रियों के लिए भी काफी सुखद रहेगा।
केशव तिवारी, पूर्व जिला पंचायत सदस्य गुप्तकाशी/तीर्थपुरोहित
रामबाड़ा चट्टी केदारनाथ यात्रा का मध्य बिन्दु था। यहां पर यात्री जरूर रुकता था, लेकिन इस समय लिनचौली तो पड़ाव विकसित किया गया है वह गौरीकुंड से 10 किमी दूर है। ऐसे में यात्री एक साथ इतनी दूरी तय नहीं कर सकते। इसलिए रामबाड़ा में फिर से कुछ स्थायी ठिकाना सरकार को बनाना ही पड़ेगा।
हर्षवर्धन शुक्ला तीर्थपुरोहित,
केदारनाथ रामबाड़ा को फिर से स्थापित करने के लिए सरकार की ओर से कोई कार्य शुरू न होना चिंता का विषय है। सरकार ने भले ही लिनचौली नया पड़ाव स्थापित कर लिया हो, लेकिन रामबाड़ा केदारनाथ व गौरीकुंड का मध्य क्षेत्र है, यहां पर यात्रियों के विश्राम करना काफी सुकून देने वाला है। इस चट्टी को दुबारा बसाया जाना चाहिए।
अनिल कुमार तीर्थपुरोहित,