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जटायु की महिमा

ऋर्षि वाल्मीकि की रामायण के अनुसार, अगस्त्य ऋर्षि के बताए रास्ते पर जब भगवान श्रीराम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण तीनों पंचवटी जाने लगे। थोड़े चले ही थे कि उन्होंने रास्ते में एक विशाल गिद्ध को देखा। उन्होंने इतना बड़ा पक्षी पहली बार देखा था। श्रीराम ने उस गिद्ध से

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 17 Jun 2015 03:53 PM (IST)Updated: Wed, 17 Jun 2015 04:04 PM (IST)
जटायु की महिमा

ऋर्षि वाल्मीकि की रामायण के अनुसार, अगस्त्य ऋर्षि के बताए रास्ते पर जब भगवान श्रीराम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण तीनों पंचवटी जाने लगे। थोड़े चले ही थे कि उन्होंने रास्ते में एक विशाल गिद्ध को देखा। उन्होंने इतना बड़ा पक्षी पहली बार देखा था। श्रीराम ने उस गिद्ध से पूछा, 'आप कौन हैं?'

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गिद्ध ने उत्तर दिया, 'हे राम मैं तुम्हारे पिता दशरथ का पुराना मित्र हूं।' गिद्ध ने आगे कहा, 'गरुड़ का छोटा भाई अरुण है। अरुण का बड़ा पुत्र संपाती है और उसका छोटा भाई में यानी जटायु हूं।' आप इस वन मे निश्चंत होकर निवास कीजिए जब आप भोजन के प्रबंध के लिए जाएंगे तो मैं बहू सीता की रक्षा के लिए उपस्थित रहूंगा।

कंबन की रामायण के अनुसार, जटायु को जब श्रीराम और लक्ष्मण देखते हैं तो उन्हें संदेह होता है। यह प्राणी कोई राक्षस हो सकता है। जटायु भी नहीं जानते कि ये युवक कौन हैं? जटायु ने जब उन राजकुमारों को गौर से देखा तो उनकी छबि दशरथ से मिलती जुलती थी।

जटायु के पूछने पर श्रीराम ने बताया कि, हम दोनों अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र हैं। यह सुनकर जटायु ने राजकुमारों का पंख फैलाकर आलिंगन किया। जटायु ने पूछा, मेरे मित्र दशरथ कैसे हैं। श्रीराम ने कहा, पिताजी अपने वचन का पालन करते हुए परमधाम पहुंच गए हैं।


यह सुनते ही जटायु मूर्छित हो गए और श्रीराम के आंखों में आंसु भर आए। उनके आंसु जैसे ही जटायु के चेहरे पर गिरे तो उनकी मूर्छा भंग हो गई। जटायु को लक्ष्मण जी ने सारा वृतांत सुनाया। मैं आपकी सदैव रक्षा करूंगा। जटायु के यह वचन सुनकर, दोनों भाईयों को बहुत अच्छा लगा।

यह हैं कंबन की रामायण का वर्णन। ऋर्षि वाल्मीकि ने जो बातें बड़ी ही सरलता से बताई हैं। कंबन उनसे हटे बिना जो बातें छूट जाती हैं उन्हें बताते हैं।


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