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ऐसी मान्यता है कि यह शक्तिपीठ दुर्गा मां की शक्ति का प्रतीक है

एक अन्य आख्यान के अनुसार मां अन्नपूर्णा, जिनके आशीर्वाद से संसार के समस्त जीव भोजन प्राप्त करते हैं, वे ही विशालाक्षी हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 17 Mar 2017 02:11 PM (IST)Updated: Mon, 27 Mar 2017 12:09 PM (IST)
ऐसी मान्यता है कि यह शक्तिपीठ दुर्गा मां की शक्ति का प्रतीक है
ऐसी मान्यता है कि यह शक्तिपीठ दुर्गा मां की शक्ति का प्रतीक है
 वाराणसी।  विशालाक्षी शक्तिपीठ अथवा देवाधिदेव की नगरी काशी में स्थित विशालाक्षी मंदिर हिंदू धर्म में मान्‍य 51 शक्तिपीठों में एक है। यह मंदिर श्रीकाशी विश्‍वनाथ मंदिर से कुछ ही कदम की दूरी पर मीरघाट पर स्थित है। भारत की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी पुरातत्व, पौराणिक कथाओं, भूगोल, कला और इतिहास संयोजन का एक महान केंद्र है।
यह दक्षिण-पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य, उत्तरी-मध्य भारत में गंगा नदी के बाएं तट पर स्थित है और हिंदुओं की सात पवित्र पुरियों में एक है। इस पवित्र स्थल को मंदिरों व घाटों का शहर भी कहा जाता है। ऐसा ही एक मंदिर है विशालाक्षी मंदिर, जिसका वर्णन देवीपुराण में विस्‍तार से मिलता है। हिंदुओं की मान्यता के अनुसार यहां माता सती की आंख या दाएं कान की मणि गिरी थी। यहां की शक्ति विशालाक्षी माता तथा भैरव कालभैरव हैं। पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आए। 
पौराणिक कथा : मंदिर के महंत बताते हैं कि भगवान शिव वियोगी होकर सती की देह को अपने कंधे पर लिए इधर-उधर भटक रहे थे, तब भगवती का कर्ण-कुंडल इसी स्थान पर गिरा था। एक अन्य आख्यान के अनुसार मां अन्नपूर्णा, जिनके आशीर्वाद से संसार के समस्त जीव भोजन प्राप्त करते हैं, वे ही विशालाक्षी हैं। स्कंद पुराण की कथा के अनुसार जब ऋषि व्यास को काशी में कोई भी भोजन अर्पण नहीं कर रहा था, तब भगवती विशालाक्षी एक गृहिणी की भूमिका में प्रकट हुईं और ऋषि व्यास को भोजन प्रदान किया। विशालाक्षी की भूमिका बिल्कुल अन्नपूर्णा के समान मानी गई है।
तंत्रसागर के अनुसार : तंत्रसागर के अनुसार भगवती गौरवर्णा हैं। उनके दिव्य विग्रह से तप्त स्वर्ण सदृश्य कांति प्रवाहित होती है। वह अत्यंत रूपवती हैं तथा सदैव षोडशवर्षीया दिखती हैं। वह मुंडमाल धारण करती हैं, रक्तवस्त्र पहनती हैं। उनके दो हाथ हैं जिनमें क्रमश: खड्ग और खप्पर रहता है।
तंत्र चूड़ामणि के अनुसार : तंत्र चूड़ामणि के अनुसार काशी में सती के दाएं कान की मणि का निपात हुआ था। अब यह स्थान मीरघाट मोहल्ले के मकान नंबर डी/3-85 में स्थित है, जहाँ विशालाक्षी गौरी का प्रसिद्ध मंदिर तथा विशालाक्षेश्‍वर महादेव का शिवलिंग भी है। यहां भगवान काशी विश्‍वनाथ विश्राम करते हैं। विशालाक्षी पीठ देवी भागवत के 108 शक्तिपीठों में सर्वप्रथम है। 
श्रद्धालु यहां शुरू से ही देवी मां के रूप में विशालाक्षी तथा भगवान शिव के रूप में काल भैरव की पूजा करने आते हैं। पुराणों में ऐसी परंपरा है कि विशालाक्षी माता को गंगा स्नान के बाद धूप, दीप, सुगंधित हार व मोतियों के आभूषण, नवीन वस्त्र आदि अर्पित किए जाएं। ऐसी मान्यता है कि यह शक्तिपीठ दुर्गा मां की शक्ति का प्रतीक है। दुर्गा पूजा के समय हर साल लाखों श्रद्धालु इस शक्तिपीठ के दर्शन करने आते हैं। देवी विशालाक्षी की पूजा-उपासना से सौंदर्य और धन की प्राप्ति होती है। यहां दान, जप और यज्ञ करने पर मुक्ति प्राप्त होती है। यदि यहां 41 मंगलवार को नियमित कुमकुम का प्रसाद चढ़ाया जाए तो इससे देवी मां भक्तों की झोली भर देती हैं।
1908 में कराया गया था जीर्णोंद्धार : महंत पं. राजनाथ तिवारी बताते हैं कि विशालाक्षी देवी मंदिर का जीर्णोंद्धार सन 1908 में कराया गया। मंदिर को दक्षिण भारतीय शैली में बनाया गया है।

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