उन्होंने इंद्र की पत्नी शची को परेशान करना शुरू कर दिया
देवताओं ने मिलकर राजा नहुष को इंद्रासन पर आसीन कर दिया। इंद्रासन पाते ही नहुष अहंकारी हो गए उन्होंने इंद्र की पत्नी शची को परेशान करना शुरू कर दिया।
प्रसिद्ध चंद्रवंशी राजा पुरुरवा के पौत्र थे नहुष। वृत्तासुर का वध करने के कारण इंद्र को स्वर्ग छोड़कर किसी अज्ञात स्थान में जाकर छिपना पड़ा। सभी देवताओं ने मिलकर पृथ्वी के धर्मात्मा राजा नहुष को इंद्रासन पर आसीन कर दिया। इंद्रासन पाते ही नहुष अहंकारी हो गए और उन्होंने इंद्र की पत्नी शची को परेशान करना शुरू कर दिया।
शची भयभीत होकर देवगुरु बृहस्पति की शरण में जा पहुंची। तब गुरु बृहस्पति ने उन्हें सुरक्षा प्रदान की और इंद्र की खोज करवाने लगे। अंत में अग्निदेव ने एक कमल की नाल में सूक्ष्म रूप धारण करके छुपे हुए इंद्र को खोज निकाला और उन्हें देवगुरु बृहस्पति के पास ले आए। गुरु बृहस्पति ने इंद्र से अश्वमेध यज्ञ करवाया और इंद्र को दोबारा शक्तिसंपन्न बना दिया, लेकिन इंद्रासन पर नहुष के होने के कारण उनकी पूर्ण शक्ति वापस नहीं मिल पाई। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी शची से कहा कि आज रात आप नहुष को मिलने के लिए बुलाएं और उनसे आग्रह करें कि वे आपसे मिलने सप्तर्षियों की पालकी पर बैठ कर आएं। नहुष ने ऐसा ही किया। सप्तर्षियों को धीरे-धीरे चलते देखकर नहुष ने शीघ्र चलने की बात कह कर अगस्त्य मुनि को एक लात मार दी। इस पर अगस्त्य मुनि ने क्रोधित होकर उनसे दोबारा पृथ्वी पर जाकर रहने का शाप दे दिया। ऋषि के शाप देते ही नहुष सर्प बन कर पृथ्वी पर गिर पड़े और देवराज इंद्र को उनका इंद्रासन पुन: प्राप्त हो गया।