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संत ज्ञानेश्वर भारत के महान संत व मराठी कवि थे

संत ज्ञानेश्वर का जन्म 1275 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 26 Aug 2016 12:52 PM (IST)Updated: Fri, 26 Aug 2016 01:00 PM (IST)
संत ज्ञानेश्वर भारत के महान संत व मराठी कवि थे

केवल 15 वर्ष की आयु में संत ज्ञानेश्वर ने स्थानीय भाषा मराठी में गीता पर भाष्य लिखकर इसे सर्वसुलभ बना दिया। संत ज्ञानेश्वर भारत के महान संत व मराठी कवि थे। उन्हें अपने ज्ञान और योग-साधना का जरा भी अहंकार नहीं था। उनके बारे में एक कथा प्रचलित है कि उनके समय में एक योगी चांगदेव को ब्रह्मविद्या के अपने ज्ञान पर अहंकार हो गया। वे संत ज्ञानेश्वर को नीचा दिखाना चाहते थे, इसलिए हाथ में विषधर सर्प लेकर वे सिंह पर सवार हो गए और महाराष्ट्र के एक गांव आलंदी, जहां ज्ञानेश्वर अपने भाई-बहन के साथ रहते थे,

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उनसे मिलने के लिए चल पड़े।

चांगदेव के आलंदी के समीप आते ही गांव में हलचल मच गई। कुछ लोग ज्ञानेश्वर के पास दौड़े हुए आए

और उन्हें चांगदेव के सिंह पर सवार होकर हाथ में सर्प का चाबुक लेकर आने की बात बताई।उस समय ज्ञानेश्वर अपनी टूटी झोपड़ी में बैठे हुए थे। जब बहन मुक्ताबाई ने चांगदेव को ससम्मान लाने के लिए उचित व्यवस्था करने को कहा, तो कहते हैं कि ज्ञानेश्वर ने अपने योग-बल से झोपड़ी की दीवार को वाहन का स्वरूप प्रदान

कर दिया। सभी भाई-बहन उस पर सवार होकर चांगदेव को लाने के लिए निकल पड़े। जब चांगदेव ने संत ज्ञानेश्वर का अहंकार रहित यौगिक बल देखा, तो उनकी समझ में आ गया कि चमत्कार साधना नहीं है, बल्कि इससे अहंकार जागता है। साधना तो अहंकार को विनष्ट कर देती है। सबसे बड़ा चमत्कार तो अंतर्मन में घटित होता है। उन्होंने ज्ञानेश्वर को साष्टांग प्रणाम किया और शिष्यत्व प्रदान करने की विनती करने लगे।

संत ज्ञानेश्वर का जन्म 1275 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। कम उम्र में ही पिता विट्ठल पंत एवं माता रुक्मिणी बाई का उनके सिर से साया उठ गया था। उन दिनों सारे ग्रंथ संस्कृत में थे और आम जनता संस्कृत नहीं जानती थी। तेजस्वी बालक ज्ञानेश्वर ने केवल 15 वर्ष की उम्र में ही गीता पर मराठी में ‘ज्ञानेश्वरी’ नामक भाष्य की रचना करके गीता को आम लोगों के लिए सुलभ बना दिया। ये संत नामदेव के समकालीन थे और उनके साथ पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान-भक्ति से परिचित

कराया। मात्र 21 वर्ष की उम्र में महान संत एवं भक्त कवि संत ज्ञानेश्वर पूरी चेतना के साथ ध्यान में बैठे और

समाधि ले ली।


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