अगर हमारे साथ कुछ बुरा भी हो जाए तो...
तूफान और आग समुद्र तट पर मछुआरों की बस्ती थी। एक बार वे अपनी-अपनी नाव लेकर समुद्र में दूर निकल गए। मछलियां पकड़ने में रात हो गई। इसी बीच तूफान आ गया।
तूफान और आग समुद्र तट पर मछुआरों की बस्ती थी। एक बार वे अपनी-अपनी नाव लेकर समुद्र में दूर निकल गए। मछलियां पकड़ने में रात हो गई। इसी बीच तूफान आ गया। नावें डगमगाने लगीं और अपना रास्ता भटक कर इधर-उधर हो गईं। मछुआरों के घर वाले परेशान हो गए। वे समुद्रतट पर आ गए और ईश्वर से मछुआरों
के सकुशल लौटने की प्रार्थना करने लगे। सभी की आंखों में आंसू थे। उधर, तूफान के कारण कहीं से कोई चिंगारी आई और मछुआरों की बस्ती में आग लग गई। संकट के ऊपर एक और संकट।
चूंकि बस्ती में कोई भी नहीं था, इसलिए आग पर काबू नहीं पाया जा सका। पूरी बस्ती जलकर खाक हो गई।
सुबह हुई, तो समुद्र तट पर इकट्ठा मछुआरों के परिवार वालों की जान में जान आई। सभी मछुआरों की
नावें तट की ओर आ रही थीं। मछुआरों से मिलकर उनके परिवार वालों ने खुशी व्यक्त की, लेकिन यह दुख भी
व्यक्त किया कि उनकी बस्ती में आग लग गई है। इस पर एक मछुआरा बोला, ‘दुखी मत हो। अगर बस्ती में
आग न लगती, तो हम लोग वापस नहीं लौट पाते।
रात में जलती हुई झोपड़ियों को देखकर ही तो हम सभी अपनी नावें किनारे पर ला सके।’
कथा-मर्म : अगर हमारे साथ कुछ बुरा भी हो जाए, तो अपने मन को मलिन नहीं करना चाहिए। हमें यह मानना चाहिए कि इसमें भी कुछ अच्छाई छुपी हुई है।